मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

व्यापार वृद्धि प्रयोग

॥ भंवर वीर तु चेला मेरा खोल दूकान
कहा कर मेरा
उठे जो डंडी बीके जो माल भंवर वीर
सोखे ना जाये ॥
विधी :- उपरोक्त मंत्र 64 बार बोलकर
काले उडद के दानो को
अभिमंत्रित कर लीजिए । उसके बाद
शनिवार की रात व्यवसाय
स्थल पर बिखेर दे । शनिवार रात से
सोमवार सुबह तक उडद के
दाने वही रहेने दे । फिर सोमवार
की सुबह झाड़ू से सारे बिखरे हुए
उडद के दाने इक्कठा करे । उसे चार रस्ते
पर जाकर फेक दे । इस
प्रकार तीन शनिवार करने से
आपकी व्यापार ना चलने की समस्या
का अंत हो जायेगा ।

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: श्रीसीतारामचंद्रोदेवता अनुष्टुप्‌ छन्द: सीता शक्ति: श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
अर्थ: — इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |

॥ अथ ध्यानम्‌ ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥
ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्दासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |

॥ इति ध्यानम्‌ ॥ 

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥ 
श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है |

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ । जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥ 
नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥
जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,

रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |

जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥
मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥
शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं |

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥
जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं |

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥
संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें |

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम, 

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |

रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ 
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥
लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ 
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥
जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ । कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |

नवरात्रो में इस रामरक्षा स्तोत्र का नित्य नौ पाठ करके एक कमल का पुष्प भगवन श्री राम जी को समर्पित करने से यह स्त्रोत्र सिद्ध हो जाता है उसके बाद नित्य एक पाठ सभी प्रकार स रक्षा करता है । 

श्रीरामचन्द्राष्टकम्


ॐ चिदाकारो धाता परमसुखदः पावनतनुर्
मुनीन्द्रैर्योगीन्द्रैर्यतिपतिसुरेन्द्रैर्हनुमता  ।
सदा सेव्यः पूर्णो जनकतनयाङ्गः सुरगुरू
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥१॥ 
मुकुन्दो गोविन्दो जनकतनयालालितपदः
पदं प्राप्ता यस्याधमकुलभवा चापि शबरी ।
गिरातीतोऽगम्यो विमलधिषणैर्वेदवचसा
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥२॥
धराधीशोऽधीशः सुरनरवराणां रघुपतिः
किरीटी केयूरी कनककपिशः शोभितवपुः ।
समासीनः पीठे रविशतनिभे शान्तमनसो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥३॥
वरेण्यः शारण्यः कपिपतिसखश्चान्तविधुरो
ललाटे काश्मीरो रुचिरगतिभङ्गः शशिमुखः ।
नराकारो रामो यतिपतिनुतः संसृतिहरो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥४॥
विरूपाक्षः काश्यामुपदिशति यन्नाम शिवदं
सहस्रं यन्नाम्नां पठति गिरिजा प्रत्युषसि वै ।
स्वलोके गायन्तीश्वरविधिमुखा यस्य चरितं
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥५॥
परो धीरोऽधीरोऽसुरकुलभवश्चासुरहरः
परात्मा सर्वज्ञो नरसुरगणैर्गीतसुयशाः ।
अहल्याशापघ्नः शरकरऋजुःकौशिकसखो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥६॥
हृषीकेशः शौरिर्धरणिधरशायी मधुरिपुर्
उपेन्द्रो वैकुण्ठो गजरिपुहरस्तुष्टमनसा ।
बलिध्वंसी वीरो दशरथसुतो नीतिनिपुणो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥७॥
कविः सौमित्रीड्यः कपटमृगघाती वनचरो
रणश्लाघी दान्तो धरणिभरहर्ता सुरनुतः ।
अमानी मानज्ञो निखिलजनपूज्यो हृदिशयो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥८॥
इदं रामस्तोत्रं वरममरदासेन रचितम्
उषःकाले भक्त्या यदि पठति यो भावसहितम् ।
मनुष्यः स क्षिप्रं जनिमृतिभयं तापजनकं
परित्यज्य श्रीष्ठं रघुपतिपदं याति शिवदम् ॥९॥
॥ इति श्रीमद् रामदासपूज्यपादशिष्यश्रीमद् हंसदासशिष्येणामरदासाख्यकविना विरचितं श्रीरामचन्द्राष्टकं समाप्तम् ॥

तेल मोहन

तेल मोहन 

ॐ नमो मन मोहिनी  मोहिनी चला गैर के मस्तक  धरा तेल का दीपक जला । जल मोहूँ  थल मोहूँ  मोहूँ सारा  

जगत । मोहिनी रानी जा शैय्या पे ला । न लाये तो गौरा पारवती कि दुहाई । लोन चमारिन कि दुहाई  नहीं तो 

वीर हनुमान कि आन । 


इस मंत्र से अभिमंत्रित चमेली  का तेल जिस स्त्री पर  छिड़क दिया जायेगा वो साधक के वश में हो जायेगी । 

मंत्र सिद्ध करने कि विधि गुप्त रहेगी जिससे इसका दुरुपयोग न हो सके । जिन पुरुषो का अपनी पत्नी से 

वैवाहिक सम्बन्ध अच्छा न चल रहा हो वो इसका प्रयोग करे । सम्बन्धो में मधुरता आ जायेगी । विधि जानने के लिए मुझसे संपर्क करे । 

श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान

श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान

(प्रस्तुत विधान के प्रत्येक मन्त्र के ११००० 'जप' एवं दशांश 'हवन' से सिद्धि होती है। हनुमान जी के मन्दिर में, 'रुद्राक्ष' की माला से, ब्रह्मचर्य-पूर्वक 'जप करें। नमक न खाए तो उत्तम है। कठिन-से-कठिन कार्य इन मन्त्रों की सिद्धि से सुचारु रुप से होते हैं।)

१॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वायु-सुताय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, अखण्ड-ब्रह्मचर्य-व्रत-पालन-तत्पराय, 

धवली-कृत-जगत्-त्रितयाय, ज्वलदग्नि-सूर्य-कोटि-समप्रभाय, प्रकट-पराक्रमाय, आक्रान्त-दिग्-मण्डलाय, 

यशोवितानाय, यशोऽलंकृताय, शोभिताननाय, महा-सामर्थ्याय, महा-तेज-पुञ्जः-विराजमानाय, श्रीराम-

भक्ति-तत्पराय, श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कारणाय, कवि-सैन्य-प्राकाराय, सुग्रीव-सख्य-कारणाय, सुग्रीव-

साहाय्य-कारणाय, ब्रह्मास्त्र-ब्रह्म-शक्ति-ग्रसनाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, शल्य-विशल्यौषधि-

समानयनाय, बालोदित-भानु-मण्डल-ग्रसनाय, अक्षकुमार-छेदनाय, वन-रक्षाकर-समूह-विभञ्जनाय, द्रोण-

पर्वतोत्पाटनाय, स्वामि-वचन-सम्पादितार्जुन, संयुग-संग्रामाय, गम्भीर-शब्दोदयाय, दक्षिणाशा-मार्तण्डाय, 

मेरु-पर्वत-पीठिकार्चनाय, दावानल-कालाग्नि-रुद्राय, समुद्र-लंघनाय, सीताऽऽश्वासनाय, सीता-रक्षकाय, 

राक्षसी-संघ-विदारणाय, अशोक-वन-विदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय, दश-ग्रीव-शिरः-कृन्त्तकाय, कुम्भकर्णादि-

वध-कारणाय, बालि-निर्वहण-कारणाय, मेघनाद-होम-विध्वंसनाय, इन्द्रजित-वध-कारणाय, सर्व-शास्त्र-

पारंगताय, सर्व-ग्रह-विनाशकाय, सर्व-ज्वर-हराय, सर्व-भय-निवारणाय, सर्व-कष्ट-निवारणाय, सर्वापत्ति-

निवारणाय, सर्व-दुष्टादि-निबर्हणाय, सर्व-शत्रुच्छेदनाय, भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-ध्वंसकाय, सर्व-

कार्य-साधकाय, प्राणि-मात्र-रक्षकाय, राम-दूताय-स्वाहा।।


२॰ ॐ नमो हनुमते, रुद्रावताराय, विश्व-रुपाय, अमित-विक्रमाय, प्रकट-पराक्रमाय, महा-बलाय, सूर्य-कोटि-

समप्रभाय, राम-दूताय-स्वाहा।।


३॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय राम-सेवकाय, राम-भक्ति-तत्पराय, राम-हृदयाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-

निवारणाय, लक्ष्मण-रक्षकाय, दुष्ट-निबर्हणाय, राम-दूताय स्वाहा।।


४॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्व-शत्रु-संहारणाय, सर्व-रोग-हराय, सर्व-वशीकरणाय, राम-दूताय स्वाहा।।

५॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, आध्यात्मिकाधि-दैविकाधि-भौतिक-ताप-त्रय-निवारणाय, राम-दूताय स्वाहा।।


६॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, देव-दानवर्षि-मुनि-वरदाय, राम-दूताय स्वाहा।।


७॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, भक्त-जन-मनः-कल्पना-कल्पद्रुमाय, दुष्ट-मनोरथ-स्तम्भनाय, प्रभञ्जन-

प्राण-प्रियाय, महा-बल-पराक्रमाय, महा-विपत्ति-निवारणाय, पुत्र-पौत्र-धन-धान्यादि-विविध-सम्पत्-प्रदाय, 

राम-दूताय स्वाहा।।


८॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वज्र-देहाय, वज्र-नखाय, वज्र-मुखाय, वज्र-रोम्णे, वज्र-नेत्राय, वज्र-दन्ताय, 

वज्र-कराय, वज्र-भक्ताय, राम-दूताय स्वाहा।।


९॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पर-यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र-त्राटक-नाशकाय, सर्व-ज्वरच्छेदकाय, सर्व-व्याधि-

निकृन्त्तकाय, सर्व-भय-प्रशमनाय, सर्व-दुष्ट-मुख-स्तम्भनाय, सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रदाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१०॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, देव-दानव-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-दुष्ट-ग्रह-

बन्धनाय, राम-दूताय स्वाहा।।


११॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पँच-वदनाय पूर्व-मुखे सकल-शत्रु-संहारकाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१२॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च-वदनाय दक्षिण-मुखे कराल-वदनाय, नारसिंहाय, सकल-भूत-प्रेत-

दमनाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१३॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च वदनाय पश्चिम-मुखे गरुडाय, सकल-विष-निवारणाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१४॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च वदनाय उत्तर मुखे आदि-वराहाय, सकल-सम्पत्-कराय, राम-दूताय स्वाहा।।


१५॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, उर्ध्व-मुखे, हय-ग्रीवाय, सकल-जन-वशीकरणाय, राम-दूताय स्वाहा।


१६॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, सर्व-ग्रहान, भूत-भविष्य-वर्त्तमानान्- समीप-स्थान् सर्व-काल-दुष्ट-

बुद्धीनुच्चाटयोच्चाटय पर-बलानि क्षोभय-क्षोभय, मम सर्व-कार्याणि साधय-साधय स्वाहा।।


१७॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पर-कृत-यन्त्र-मन्त्र-पराहंकार-भूत-प्रेत-पिशाच-पर-दृष्टि-सर्व-विध्न-तर्जन-

चेटक-विद्या-सर्व-ग्रह-भयं निवारय निवारय स्वाहा।।


१८॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, डाकिनी-शाकिनी-ब्रह्म-राक्षस-कुल-पिशाचोरु-भयं निवारय निवारय स्वाहा।।


१९॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, भूत-ज्वर-प्रेत-ज्वर-चातुर्थिक-ज्वर-विष्णु-ज्वर-महेश-ज्वर निवारय 

निवारय स्वाहा।।


२०॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, अक्षि-शूल-पक्ष-शूल-शिरोऽभ्यन्तर-शूल-पित्त-शूल-ब्रह्म-राक्षस-शूल-

पिशाच-कुलच्छेदनं निवारय निवारय स्वाहा।।

पति-स्तवनम्नमः

पति-स्तवनम्नमः

कान्ताय सद्-भर्त्रे, शिरशछत्र-स्वरुपिणे।

नमो यावत् सौख्यदाय, सर्व-सेव-मयाय च।।

नमो ब्रह्म-स्वरुपाय, सती-सत्योद्-भवाय च।

नमस्याय प्रपूज्याय, हृदाधाराय ते नमः।।

सती-प्राण-स्वरुपाय, सौभाग्य-श्री-प्रदाय च।

पत्नीनां परनानन्द-स्वरुपिणे च ते नमः।।

पतिर्ब्रह्मा पतिर्विष्णुः, पतिरेव महेश्वरः।

पतिर्वंश-धरो देवो, ब्रह्मात्मने च ते नमः।।

क्षमस्व भगवन् दोषान्, ज्ञानाज्ञान-विधापितान्।

पत्नी-बन्धो, दया-सिन्धो दासी-दोषान् क्षमस्व वै।।

।।फल-श्रुति।।

स्तोत्रमिदं महालक्ष्मि, सर्वेप्सित-फल-प्रदम्।

पतिव्रतानां सर्वासाण, स्तोत्रमेतच्छुभावहम्।।

नरो नारी श्रृणुयाच्चेल्लभते सर्व-वाञ्छितम्।

अपुत्रा लभते पुत्रं, निर्धना लभते ध्रुवम्।।

रोगिणी रोग-मुक्ता स्यात्, पति-हीना पतिं लभेत्।

पतिव्रता पतिं स्तुत्वा, तीर्थ-स्नान-फलं लभेत्।।

विधिः-

१॰ पतिव्रता नारी प्रातः-काल उठकर, रात्रि के वस्त्रों को त्याग कर, प्रसन्नता-पूर्वक उक्त स्तोत्र का पाठ करे। फिर घर के सभी कामों से निबट कर, स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर, भक्ति-पूर्वक पति को सुगन्धित जल से स्नान करा कर शुक्ल वस्त्र पहनावे। फिर आसन पर उन्हें बिठाकर मस्तक पर चन्दन का तिलक लगाए, सर्वांग में गन्ध का लेप कर, कण्ठ में पुष्पों की माला पहनाए। तब धूप-दीप अर्पित कर, भोजन कराकर, ताम्बूल अर्पित कर, पति को श्रीकृष्ण या श्रीशिव-स्वरुप मानकर स्तोत्र का पाठ करे।

२॰ कुमारियाँ श्रीकृष्ण, श्रीविष्णु, श्रीशिव या अन्य किन्हीं इष्ट-देवता का पूजन कर उक्त स्तोत्र के नियमित पाठ द्वारा मनो-वाञ्छित पति पा सकती है।

३॰ प्रणय सम्बन्धों में माता-पिता या अन्य लोगों द्वारा बाधा डालने की स्थिति में उक्त स्तोत्र पाठ कर कोई भी दुखी स्त्री अपनी कामना पूर्ण कर सकती है।

४॰ उक्त स्तोत्र का पाठ केवल स्त्रियों को करना चाहिए। पुरुषों को 'विरह-ज्वर-विनाशक, ब्रह्म-शक्ति-स्तोत्र' का पाठ करना चाहिए, जिससे पत्नी का सुख प्राप्त हो सकेगा।

प्राणेश्वर श्रीकृष्ण

मंत्र- "ॐ ऐं श्रीं क्लीं प्राण-वल्लभाय सौः सौभाग्यदाय श्रीकृष्णाय स्वाहा।" (22)

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीप्राणेश्वर-श्रीकृष्ण-मंन्त्रस्य भगवान् श्रीवेदव्यास ऋषिः, गायत्री छंदः, श्रीकृष्ण-परमात्मा देवता, क्लीं बीजं, श्रीं शक्तिः, ऐं कीलकं, ॐ व्यापकः, मम समस्त-क्लेश-परिहार्थं, चतुर्वर्ग-प्राप्तये, सौभाग्य-वृद्धयर्थं च जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः- श्रीवेदव्यास ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छंदसे नमः मुखे, श्रीकृष्ण-परमात्मा देवतायै नमः हृदि, क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, श्रीं शक्तये नमः नाभौ, ऐं कीलकाय नमः पादयो, ॐ व्यापकाय नमः सर्वाङ्गे, मम समस्त-क्लेश-परिहार्थं, चतुर्वर्ग-प्राप्तये, सौभाग्य-वृद्धयर्थं च जपे विनियोगाय नमः अंजलौ।

कर-न्यासः- ॐ ऐं श्रीं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः, प्राण-वल्लभाय तर्जनीभ्यां स्वाहा, सौः मध्यमाभ्यां वषट्, सौभाग्यदाय अनामिकाभ्यां हुं श्रीकृष्णाय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्, स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्।

अंग-न्यासः- ॐ ऐं श्रीं क्लीं हृदयाय नमः, प्राण-वल्लभाय शिरसे स्वाहा, सौः शिखायै वषट्, सौभाग्यदाय शिखायै कवचाय हुं, श्रीकृष्णाय नेत्र-त्रयाय वौषट्, स्वाहा अस्त्राय फट्।

ध्यानः-
"कृष्णं जगन्मपहन-रुप-वर्णं, विलोक्य लज्जाऽऽकुलितां स्मराढ्याम्।
मधूक-माला-युत-कृष्ण-देहं, विलोक्य चालिंग्य हरिं स्मरन्तीम्।।"
अर्थात् संसार को मुग्ध करने वाले भगवान् कृष्ण के रुप-रंग को देखकर प्रेम-पूर्ण होकर गोपियाँ लज्जापूर्वक व्याकुल होती हैं और मन-ही-मन हरि को स्मरण करती हुई भगवान् कृष्ण की मधूक-पुष्पों की माला से विभुषित देह का आलिंगन करती हैं।
पुरश्चरण- १०,०००० जप।

रविवार, 15 दिसंबर 2013

श्याम्कौर मोहिनी साधना


श्याम्कौर मोहिनी का नाम सुनते ही बड़े बड़े साधक कांप जातें है । इस सिद्धि की मदद से आप घर बैठे बैठे
किसी की भी खबर माँगा सकते हैं । किसी का भी वशीकरण कर सकते हैं । इस प्रकार का प्रयोग अधिकतर
नाथ संप्रदाय में परचलित है । 

 विधि 

इस मंत्र को घर से बहार किसी नदी के किनारे सिद्ध करें । वस्त्र कोई भी पहन सकते हैं । किसी भी प्रकार के आसन का इस्तेमाल कर सकते हैं । दिशा का भी कोई बंधन नहीं । अपने साथ दो लड्डू, दो मीठे पान, सात पतासे और मीठे चावल, एक शराब की बोतल, एक दीपक और सरसों का तेल साथ ले जायें । सबसे पहले चावल नदी में प्रवाहित कर दें और सात बार नीचे दिये गए मंत्र का जाप करें ।
मंत्र :- खवाजा खिजर जिन्दा पीर, पंजे पीर तेरे मदद्गिर सिद्धा नाथा दा सरदार कचिया पाकिया कडाहिया तेरे नाम ॥

मंत्र जाप के बाद खवाजा खिजर से आज्ञा ले और आसन पर बैठने से पहले अपने चारोँ तरफ एक गोला खींचे । गोला खींचते समय नीचे दिये गए मंत्र का 11 बार जाप करें ॥
मंत्र :- आस किलूँ पास किलूँ किलूँ अपनी काया जगदा मसान किलूँ बैठी किलूँ छाया इसर का कोट वर्मा 

क़ि थाली मेरे घाट पिंड का हनुमान वीर रखवाला ॥

इसके बाद गुरु पूजन गणेश पूजन करें और उनसे आज्ञा लें । फिर कोई भी रक्षा मंत्र जप लें । फिर रुद्राक्ष
क़ि माला से एक माला शिवमंत्र क़ि जपें और शिव से आज्ञा ले । फिर दो लड्डू, पान, पतासे किसी कागज़
के टुकड़े पर रखिएँ और तेल का दीपक जलाएं । शराब से उसके चारोँ तरफ एक गोला बनाएं और बची हुई शराब की बोतल पास में रख दें और 11 माला इस मंत्र क़ि जपें ॥
मंत्र :- आई रे श्याम्कौर कहाँ से, आई बागड़ देश से, आई उड़न खटोला उडदी आई, लाल परांदा उडदी आई हंकारी, आई पश्कारी जाई, मेरा कारज न करें तैनू तेरे गुरु दी आन! ॥

ये ही क्रिया आपको 41 दिन करनी है ।

अंतिम दिन माता को 16 सिंगार चढ़ाएं । लगभग 15 दिन बाद ही आपको ऐसा नज़र आने लगेगा क़ि
मोर पर सवार एक बहोत सुंदर स्त्री आसमान से निचे उतर रही है ।  जाप पूरा होने से पहले किसी भी हालत में गोले से बहार न आये । कई बार कुछ डरावने अनुभव होते हैं । जब अंतिम दिन देवी प्रत्यक्ष हों उनसे सदेव माता रूप में साथ रहने का बचन ले ले । जब कोई विशेष काम हो तो एक माला मंत्र की जपें देवी प्रकट हो जाएगी । अगर इस मंत्र का जाप किसी क़ि तस्वीर के आगे रात में किया जाये तो वोह नींद में चलकर आपके पास आ जायेगा । यदि कोई घर से भाग जाये तो उसके कपड़ों पर इस मंत्र का जाप करें 24 घंटे में वोह घर की तरफ वापस लौट आयेगा । मंत्र से अभिमंत्रित सिंदूर मस्तक पर लगाने से देखने वाला मोहित हो जाता है । पर वशिकरण हेतु इसका दुरुपयोग न करें । यह दृष्टी मात्र से
वशिकरण करती हैं । अगर इस मंत्र को जाप कर किसी को देख लिया जाये तो भी वशिकरण होता है । यह
देवी सिद्ध होने के बाद सभी कर्मों में सहायता करती है और हर समय साधक के साथ रहती हैं । पर कमज़ोर दिल वाले लोग इस प्रयोग को कभी न करें ॥