रविवार, 28 जुलाई 2013

जीवन समस्याओं से भरा हो, तो...........यह उपाय करे

 
1. जन्मकुंडली में यदि ग्यारहवें घर में शनि हो, तो मुख्य द्वार की चौखट बनाने से पहले उसके नीचे चंदन दबा दें, सुख-समृद्धि से घर सुशोभित रहेगा।

2. भवन-निर्माण से पहले भूखंड पर पांच ब्राह्मणों को भोजन करना बहुत शुभ होता है। इससे घर में धन, ऐश्वर्य व सुखों का वास होता है। बच्चे भी संस्कारी व आज्ञाकारी होते हैं।

3. यदि जीवन समस्याओं व दुखों से भरा हो, तो सौ ग्राम साबुत चावल किसी तालाब में डाल दें।
[ जारी है ]

4. यदि घर में मां को लगातार कोई कष्ट सता रहा हो, तो 121 पेड़े लेकर बच्चों को बांट दें कष्ट दूर हो जाएगा।

5. यदि जमीन जायदाद लाख कोशिशों के बावजूद अधिक दामों न बिक पा रहा हो, तो कभी-कभी चाय की पत्ती जमादार को दें। चांदी का चैकोर टुकड़ा सदैव अपने पास रखें और चांदी के गिलास में ही पानी पीएं। हमेशा सफेद टोपी पहनें। संपत्ति अधिक दामों में बिक जाएगी।

6. राहु ग्रह की अशुभता दूर करनी हो, तो भगवती काली की उपासना करें । राहु अशुभ हो तो अचानक शारीरिक कष्ट होता है। चांदी की चेन गले में पहनें, राहत मिलेगी। कुत्तों को रोटी अवश्य खिलाएं, गरीबों को सूज़ी का हलवा अपने हाथ से बांटें, कष्ट दूर होगा।

7. यदि व्यवसाय या रोजगार में विघ्न बहुत आ रहे हों तो दस अंधों को भोजन कराएं और गुलाब जामुन खिलाएं। अपने माता-पिता की सेवा करें, विघ्न अपने आप दूर हो जाएंगे ।

8. पढाई करते वक्त विशेष कर नींद आए और पढ़ाई में मन न लगे, रुकावटें आएं तो इसके लिए पूर्व की तरफ सिरहाना करके सोएं। रोज रामायण के सुन्दरकांड के कुछ अंशों का पाठ करना चाहिए। इसके साथ-साथ सवा 5 रत्ती का एक खूबसूरत मोती और सवा 6 रत्ती का मूंगा चांदी की अंगूठी में जड़वा कर क्रमशः छोटी अंगुली और अनामिका में धारण करें । पढ़ते वक्त नींद नहीं आएगी तथा इस उपाय से विद्यार्थी परीक्षा में अव्वल आते हैं और समस्त रुकावटें दूर हो जाती हैं।

9. मानसिक अशांति की समस्या किसी पूर्व पाप का परिणाम होता है। इसे दूर करने के लिए यह उपाय बहुत लाभकारी है। प्रतिदिन हनुमान जी की पूजा और उनका स्मरण करें। हनुमान चालीसा का अवश्य पाठ करें। शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से उपाय शुरू करें। सोते वक्त एक छोटा सा चाकू सिरहाने के नीचे रखें। जिस कमरे में सोते हों, कपूर का लैंप जलाएं। समस्या का सामधान हो जाता है। पूर्व जन्म के पाप नष्ट होने लगते हैं और स्थितियां अनुकूल होने लगती हैं तथा मानसिक अशांति दूर होती है।

10. कर्ज से मुक्ति के लिए: कर्ज से पीड़ित व्यक्ति को चाहिए कि दोनों मुटठी में काली राई लें। चैराहे पर पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें तथा दाहिने हाथ की राई को बाईं ओर और बाएं हाथ की राई को दाहिनी दिशा में फेंक दें। एक साथ राई को फेंकना चाहिए। राई फेंकने के पश्चात चौराहे पर सरसों का तेल डाल कर दोमुखी दीपक जला देना चाहिए। दिया मिट्टी का रखना चाहिए। यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को संध्या के समय करें। श्रद्धा द्वारा किया गया यह उपाय अवश्य कर्ज से मुक्ति दिलवाता है। एक बार सफलता न प्राप्त हो, तो दोबारा फिर कर लेना चाहिए। जिस चौराहे पर टोटका किया जा चुका हो उस दिन उस चौराहे पर टोटका नहीं करना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि अमावस्या हो और शनिवार हो तो यह विशेष फलदायी होता है। तब यह टोटका करना जादुई चमत्कार से कम नहीं है।

सुख प्राप्ति के लिए त्याग जरूरी

एक बार की बात है, भक्त श्रेष्ठ प्रह्लाद जी अपने कुछ मंत्रियों के साथ प्रजा की सही स्थिति जानने के लिए, उनके दुख-दर्दों को समझने के लिए राज्य में भ्रमण कर रहे थे। घूमते-घूमते वह कावेरी नदी के तट पर पहुंचे। एकाएक उनकी दृष्टि एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी, जिसका सारा शरीर धूल-धूसरित तथा भोगी मनुष्यों की तरह हृष्ट-पुष्ट था।

उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह कोई ऋषि मुनि या अवधूत है। किंतु भक्तराज प्रह्लाद की दृष्टि से यह बात छिपी न रही। उन्होंने पहचान लिया कि वे मुनि दत्तोत्रय हैं। मुनि के निकट जाकर प्रह्लाद जी ने उनके बारे में जानने की इच्छा से प्रश्न किया कि भगवान! आपका शरीर विद्वान, चतुर तथा समर्थ है।

ऐसी अवस्था में आप सारे संसार को कर्म करते हुए देखकर भी समभाव से पड़े हुए हैं, इसका क्या कारण है? यदि हमारे सुनने योग्य हो तो अपने बारे में हमें अवश्य बतलाइये। मुनि दत्तात्रेय जी ने कहा- दैत्यराज! मैंने अपने अनुभव से जैसा भी, जो कुछ जाना है, उसके अनुसार मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देता हूं। तृष्णा एक ऐसी वस्तु है, जो इच्छानुसार भोगों के प्राप्त होने पर भी पूरी नहीं होती।

उसी के कारण मनुष्य को जन्म मृत्यु के चक्कर में भटकना पड़ता है। तृष्णा ने मुझसे न जाने कितने कर्म करवाये और उनके कारण न जाने कितनी योनियों में मुझे डाला। कर्मों के कारण अनेक योनियों में भटकते हुए मुझे प्रभु कृपा से मनुष्य योनि मिली है। यह मनुष्य योनि स्वर्ग, मोक्ष, तिर्यग्योनि तथा इस मानव देह की प्राप्ति का भी द्वार है।

इस शरीर को पाकर मनुष्य पुण्य करे तो स्वर्ग, पाप करे तो पशु-पक्षी आदि की योनियों तथा पाप और पुण्य दोनों से अलग होकर निष्काम कर्म करे तो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।परंतु मैं इस संसार में देखता हूं कि सारे लोग कर्म तो करते हैं सुख की प्राप्ति के लिए, दु:खों से छुटकारा पाने के लिए, परंतु उसका फल उल्टा ही होता है और वे दु:खों में पड़ जाते हैं। इसीलिए मैं कर्मों से उपरत हो गया हूं।

मनुष्य की आत्मा ही सुखस्वरूप है। मनुष्य का शरीर ही उसके प्रकाशित होने का स्थान है, और उसके सारे कर्मों से निवृत्त हो जाता है। छुटकारा पा जाता है और यही मोक्ष है। इसलिए संसार के सभी भोगों को मन का विलास समझ कर वह अपने प्रारब्ध को भोगता हुआ पड़ा रहता है।

मनुष्य अपने सच्चे परमार्थ, यानी वास्तविक स्वरूप को, जो कि अपना ही स्वरूप है, भूलकर इस संसार को सत्य मानता हुआ अत्यंत भयंकर और विचित्र जन्म-मरण के चक्र में भटकता रहता है। जैसे अज्ञानी मनुष्य जल में उत्पन्न तिनके और सेवार से ढके हुए जल को जल न समझकर, जल के लिए मृगतृष्णा की भांति दौड़ता है, वैसे ही अपनी आत्मा से भिन्न वस्तु में सुख समझने वाला पुरुष आत्मा को छोडक़र विषयों की ओर दौड़ता है।

यह शरीर तो प्रारब्ध के अधीन है। कर्मों के द्वारा जो अपने लिए सुख पाना और दुःखों को मिटाना चाहता है। वह कभी अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता। उसके बार-बार किये हुए सारे कर्म व्यर्थ हो जाते हैं। मनुष्य सदा शारीरिक, मानसिक आदि दुःखों से परेशान ही रहता है। यह मरणशील मनुष्य यदि बड़े श्रम और कष्टों से कुछ धन और भोग प्राप्त भी कर लिया तो उससे क्या होने वाला है।

लोभी और इंद्रियों के वश में रहने वाले धनियों का दुख तो मैं देखता ही रहता हूं। भय के मारे उन्हें नींद नहीं आती। सब पर उनका संदेह बना रहता है। इसलिए बुद्घिमान पुरुष को चाहिए कि जिसके कारण शोक, मोह, भय, क्रोध, राग आदि का शिकार होना पड़ता है, उन सबको त्याग दे, क्योंकि त्याग से ही सुख प्राप्त होता है।

मधुमक्खी जैसे मधु इकट्ठा करती है, वैसे ही लोग बड़े कष्टों से धन का संचय करते हैं, परंतु कोई उस धनराशि के स्वामी को मारकर उससे धन छीन लेता है। इससे मैंने यह शिक्षा ग्रहण की कि विषय भोगों से विरक्त ही रहना चाहिए।

सत्य की खोज करने वाले मनुष्य को चाहिए कि मन के नाना प्रकार के संकल्प-विकल्पों को आत्मानुभूति में स्वाह कर दे, आत्मा में स्वाहा कर दें और इस प्रकार आत्म-स्वरूप में स्थित होकर सांसारिक भोगों से निष्क्रिय एवं उपरत हो जाय। तब वह स्वत: ही सुख स्वरूप हो जायेगा।

प्रह्लाद जी मुनि दत्तात्रेय से धर्म के इन गूढ़ रहस्यों को समझ कर बड़े प्रेम से मुनि की पूजा की और उनसे विदा लेकर बड़ी प्रसन्नता से अपनी राजधानी के लिए प्रस्थान किया।

क्या उर्दू नामक कोई भाषा संसार में है?

इस लेख को पढ़ ने से पहले कृपया ये प्रश्न स्वय से करे की क्या आपने कभी किसीको उर्दू बोलते हुए देखा है? यदी हा तो ये निश्चित है की उर्दू सुनने में हिंदी जैसी ही लगती है केवल कुछ उटपटांग शब्द उर्दू में आते है!

जैसे की:
हिंदी उर्दू
नेताजी का ‘देहांत’ हो गया नेताजी का ‘इंतकाल’ हो गया
मै आपकी ‘प्रतीक्षा’ कर रहा था मै आपका ‘इंतजार’ कर रहा था
‘परीक्षा’ कैसी थी? ‘इम्तिहान’ कैसा था?
आपके रहने का ‘प्रबंध’ हो चूका है आप के रहने का ‘इंतजाम’ हो चूका है
ये मेरी ‘पत्नी’ है ये मेरी ‘बीबी’ है
मै ‘प्रतिशोध’ की आग में जल रहा हु मै ‘इंतकाम’ की आग में जल रहा हु



ये उदाहरण देख कर आप समझ गए की उर्दू की रचना का कंकाल (Skeleton) हिंदी से आया है, केवल हिंदी के स्थान पर अरबी शब्दों का उपयोग किया गया है!जब आप अधिक अध्ययन करेंगे तो ये पता चलेगा की उर्दू नामक कोई भाषा ही नही है! वो तो एक बोली है,, हिंगलिश जैसी!भाषा वो होती है जिसे व्याकरण होता है अपना एक शब्दकोष होता है! भाषा लिखने का एक माध्यम हो सकती है, किन्तु कोई बोली, भाषा का स्थान नही ले सकती क्यों की उसे ना तो व्याकरण होता है ना तो शब्द कोष!ठीक वही बात उर्दू और हिंग्लिश के लिए लागु होती है! ये दोनों एक भेल पूरी जैसी बोलिय है जिन्हें अपना कोई शब्द कोष अथवा व्याकरण नही है! उर्दू में ५०% शब्द हिंदी-संस्कृत के है, २५% अरबी, १०% फारसी, ५% चीनी-मंगोल और तुर्की तथा १०% अंग्रेजी है! अब आप ही बताइए एसी खिचडी बोली कभी कोई भाषा का स्थान ले सकती है?उर्दू के विषय में आश्चर्य जनक जानकारी!

चेंगिज खान और उसका पोता हलागु खान ये इस्लाम के भारी शत्रु थे! जिन्होंने इस्लामी खिलाफत में घुसकर ५ करोड मुल्ला मुसलमानों की क़त्ल की थी! ये प्रतिशोध था क्यों की ६०० वर्षों से लगातार (९५० से १२५८) अरब मुस्लिमो द्वारा इन तुर्को और मुघलो को मुस्लिम बनाने के लिए उन पर अति भीषण आक्रमण किये जा रहे थे! इस से पीड़ित होकर प्रतिशोध भावना से ये तुर्क-मुघल टोलिया चेंगिज खान उर्फ तिमू जीनी के नेतृत्व में मुस्लिम प्रदेशो पर टूट पड़ी! आज भी इस्लामी जगत में चेंगिज खान को पाजी, लुटेरा, लफंगा इत्यादि नामो से मुस्लिम इतिहासकार विभूषित करते है!

इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को “ओरडू” कहा जाता था! आगे चल कर ये सारे तुर्क और मुघल अरब मुस्लिमो द्वारा छल बल से मृत्य की यातनाए देकर मुस्लिम बनाए गए! उन्हें तलवार की धार पर इस्लाम के अरब कारागार में तो लाया गया पर उनके मंगोल नाम बदल कर सब को अरबी नाम देना संभव नही था! क्योकि १ दिन में जब २ लाख या ५ लाख मुघलो को मुस्लिम बनया गया! उसका नियंत्रण रखना उन अरब मुस्लिमो को संभव नही था! इस लिए उन तुर्क-मुघलो में इस्लाम पूर्व कुछ संस्कार वैसे के वैसे रह गए! जैसे की खान उपनाम जो अमुस्लिम है!
जब कोई मुस्लिम बनता है तो उसे अरब आचार अपनाने पड़ते है! जैसे की महमद, अब्दुल, इब्राहीम, अहमद इत्यादि अरब नाम (जिन्हें लोग मुस्लिम नाम समझते है वो वास्तव में अरब नाम है) अपनाने पड़ते है! दिन में ५ बार अरब मातृभूमि की ओर माथा टेकना पड़ता है (फिर चाहे आप अरब नही हो तो भी)! इस प्रकार सारे तुर्क मुघल उनके इस्लामीकरण के उपरांत अरब देशो के उपग्रह से बन गए जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही था!

अगले २०० वर्षों में ये इन मुगलों ने जो (जो २०० वर्ष पहले तलवार की नोक पर मुस्लिम बनाए गए थे) भारत पर आक्रमण किया! आश्चर्य इस बात का है की जिस इस्लामी जिहाद का रक्त रंजित संदेश जीन मुघल और तुर्को ने भारत के हिंदुओ पर थोपा वे स्वय भी उसी रक्त रंजित जिहाद के भक्ष बन चुके थे! किन्तु इस्लाम के मायावी जेल में जाने पर वो अपना सारा अतीत भूलकर अरब देशो के एक निष्ट गुलाम बन चुके थे!

इस तुर्क-मुघल आक्रमण काल में अनेक हिंदुओ को छल-बल से गुलाम बनाकर सैनिक छावनी (जिसे मंगोल भाषा में ओरडू अर्थात उर्दू) में लाया जाता था! उनपर बलात्कार किये जाते थे! उनकी भाषा जो की बृज भाषा, अवधी हिंदी थी पर प्रतिबंध लगाया जाता था! उन्हें अरबी भाषा (जो की इस्लाम की अधिकृत भाषा है) बोलने पर विवश किया जाता था! आप सोचिए यदी आप को कोई मृत्यु का भय दिखा कर चीनी भाषा में बोलने को कल से कहेंगे, तो क्या आप कल से चीनी भाषा बोल सकोगे?
नही!

ठीक यही बात उन हिंदी भाषी हिंदुओ पर लागु होती है! वो अरबी तो बोल न सके किन्तु भय के कारण उनकी अपनी मतृभाषा में अरबी शब्द फिट करने लगे ताकि अपने प्राण बचा सके! इस से एक ऐसे बोली का जन्म हुआ जो ना तो हिंदी थी ना तो अरबी! असकी वाक्य रचना तो हिंदी से थी किन्तु शब्द सारे अरबी, फारसी, तुर्की और चीनी थे! ज्यो की वो बोली उस सैनिक छावनी में भय के कारण उत्पन्न हुई इस लिए उसे ‘ओरडू” का नाम मिला! “ओरडू” का भ्रष्ट रूप है “उर्दू”!

आगे चल कर इस उर्दू नामक बोली में बहुत से अंग्रेजी शब्द भी आ गए जैसे की

अफसर = Officer
बिरादर = Brother
बोरियत = Boring
इत्यादि ……..

मुघल और तुर्क इस भेल पूरी उर्दू नामक बोली को गुलामो की भाषा मानते थे, क्योकि वो अशुद्ध थी! मुघल दरबार की भाषा फारसी थी उर्दू नही! आप जानते है उस ओरडू में जो इन मुघलो के गुलाम थे वो कौन है?

वही जो आज अपनी भाषा उर्दू बताते है! वो हिंदु गुलाम ही आज के भारत के मुस्लिम है! गाँधी-नेहरु हमारे इतहास को गाली देते है की हिंदु इतहास १००० वर्ष गुलामी का इतिहास है! परंतु ये गुलामी का इतहास उन हिंदुओ का है जो आज १००० वर्ष इस्लाम के अरब कारागृह में सड रहे है! ये गुलाम हिंदु ही आज के भारत और पाकिस्तान के मुस्लिम है! जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही है!

तुर्क, मुघलो को अरब मुस्लिमो ने इस्लाम में लाकर अपना गुलाम बनया! जब इन अरब के मुस्लिम गुलामो ने भारत पर आक्रमण किया तब उन्होंने हिंदुओ को अपना गुलाम बनाया, और अपने खान इत्यादि नाम उन पर थोपे, उनपर उर्दू (अर्थात सैनिक छावनी) में बलात्कार किये!

अर्थात स्पष्ट रूप से देखे तो भारत के मुस्लिम “गुलामो के गुलाम” है! वे ना तो अरब है ना तो मंगोल!

उर्दू एक भाषा है ऐसा प्रचार गाँधी ने किया! क्यों की वे “मुस्लिम एक राष्ट्र है” ऐसा मानते थे! इस लिए भारत के मुस्लिमो की एक भाषा हो यह देखकर उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! महात्माजी गांधीजी अपने व्याख्यान में कहते थे, बादशाह राम, बेगम सीता तथा उस्ताद वसिष्ट (१)! इस प्रकार उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! १९३५ तक तो उर्दू नामक कोई भाषा है इस तर्क से कोई परिचित भी नही था!

गाँधी-नेहरु को मानने वाली अल खान्ग्रेस भी उनके जैसी ही कट्टर है! किन्तु उनका ये सिद्धांत सम्पूर्णतहा असत्य सिद्ध हुआ की मुस्लिम एक राष्ट्र है! यदी वे एक राष्ट्र होते तो बंगलादेश पाकिस्तान से अलग नही होता!

कुछ लोग फेस बुक और अन्य स्थानों पर अपने भाषा ज्ञान में उर्दू को भी जोड़ते है! अर्थात Languages Known में आपने उर्दू को जोड़ा है, तो कृपया तुरंत हटाए, क्यों की यदी आप उसे अपने भाषा बताएँगे तो क्या आप उस ओरडू नामक गुलामो के जेल में थे?

शनिवार, 27 जुलाई 2013

भारत के हिन्दुओं एक हो

 कहते हैं कि लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का नियम काम करता है। हमारे लुटेरे छद्म धर्मनिरपेक्ष सियासतदानों ने पहले आरक्षण के नाम पर बहुसंख्यक हिन्दुओं को आपस में लड़वाया फिर पूरे भारत को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बाँट दिया। आज हम हिन्दुओं की स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि हमारे देश का प्रधानमंत्री लाल-किले से खुलेआम ऐलान करता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। पारसी,इसाई,बौद्ध,जैन और सिक्खों की स्थिति तो पहले से ही हिन्दुओं से अच्छी है। तो फिर इसका तो यही मतलब हुआ कि ऐसा कहके और करके केंद्र सरकार सिर्फ मुसलमानों को खुश करना चाहती है। आज हम अपनी मातृभूमि-आदिभूमि हिन्दुस्थान में मंदिरों में लाऊडस्पीकर और घंटे-घड़ियाल तक नहीं बजा सकते (उदाहरण के लिए हैदराबाद का भाग्यलक्ष्मी मंदिर)। आज ही उत्तर प्रदेश के मेरठ में मंदिर में लाऊडस्पीकर बजाने पर मुसलमानों ने मंदिर पर हमला कर दिया जिसमें दो लोग मारे भी गए। ऐसा कब तक चलेगा? हमने तो कभी नहीं रोका उनको नमाज पढ़ने या अजान देने से फिर वो क्यों हम पर गोलियाँ चलाते हैं? इतिहास गवाह है कि दंगे चाहे भागलपुर में हुए हों या गुजरात में,शुरू हमेशा मुसलमान ही करते हैं।
                                      मित्रों, लाल किले से ऐसा कहकर और मुसलमानों के लिए अलग से विशेष योजनाएँ चलाकर हमारे ही वोटों से चुनी गई हमारी केंद्र सरकार ने हमें हमारे ही देश हिन्दुस्थान में द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया है। अंग्रेजों के जमाने से ही भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए आपराधिक कानून या संहिता तो एक है लेकिन दीवानी कानून या नागरिक संहिता अलग-अलग हैं। यह घोर दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के बाद भी जो भी संशोधन और बदलाव हमारी सरकारों ने किए सिर्फ और सिर्फ हिन्दू उत्तराधिकार कानून और विवाह कानून में किए मुगलकाल से चले आ रहे तत्संबंधी इस्लामिक कानूनों को कभी छुआ तक नहीं गया। हिन्दू पुरूष एक विवाह करे और मुसलमान पुरूष चार फिर क्यों नहीं मुसलमानों की जनसंख्या ज्यादा तेजी से बढ़ेगी? बीच में स्व. संजय गांधी ने 1974-77 में जबरन नसबंदी के प्रयास भी किए लेकिन उनको भी दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने कदम पीछे खींचने पड़े। मैं सर्वधर्मसमभाव पर अमल का दावा करनेवाली केंद्र सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्यों सारे सुधार और संशोधन हिन्दुओं के विवाह और सम्पत्ति कानून में ही किए जाते हैं,मुसलमानों के कानूनों को क्यों नहीं बदला जाता है? ٍक्यों बार-बार सारे-के-सारे प्रतिबंध हिन्दुओं पर ही लादे जाते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्तमान और पूर्व की केंद्र सरकारों की इस प्रवृत्ति पर कई बार सवाल उठाए हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकारों  को समान नागरिक संहिता लागू करने परामर्श दिया है लेकिन सब बेकार।
                               मित्रों,इसी तरह अंग्रेजों के जमाने से ही हिन्दू मंदिरों पर तो सरकार का कब्जा और नियंत्रण है मगर मस्जिदों,दरगाहों और कब्रगाहों पर शिया या सुन्नी वक्फ बोर्ड का। जब सरकार या दूसरों के पैसों से हज करना शरियत के अनुकूल नहीं है तो फिर क्यों केंद्र सरकार मुसलमानों को हज-सब्सिडी दे रही है और क्यों भारतीय मुसलमान इसका लाभ उठा रहे हैं? अमरनाथ या कैलाश-मानसरोवर-यात्रा पर हिन्दुओं को क्यों सब्सिडी नहीं दी जा रही है? क्यों हिन्दू मंदिरों के खजाने पर कोर्ट-कानून का डंडा चलता है और क्यों मुस्लिम दरगाहों की कमाई को सरकार के अधिकार-क्षेत्र से बाहर रखा गया है?
                                    मित्रों,हम यह भी जानना चाहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी किस धर्म को मानते हैं? क्या वे हिन्दू-धर्म को मानते हैं? अगर वे किसी दूसरे धर्म को मानते हैं तो फिर क्या गारंटी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वे हिन्दुओं का खास ख्याल रखेंगे और अल्पसंख्यक-फर्स्ट की कुत्सित नीति पर नहीं चलेंगे? हम यह भी जानना चाहेंगे कि राहुल गांधी के गोहत्या के बारे में क्या विचार हैं? वे इसका समर्थन करते हैं या विरोध? क्या उन्होंने कभी गोमांस-भक्षण किया है या वे अब भी गोमांस खाते हैं? क्या सोनिया गांधी ने कभी गोमांस खाया है या अब भी वे उतने ही चाव से इसका सेवन करती हैं?
                                              मित्रों,हमारे गाँवों में एक कहावत बड़ी ही मकबूल है कि जो खाए गाय का गोश्त,वो हो नहीं सकता हिन्दुओं का दोस्त। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन हम हिन्दुओं का शुभचिंतक है और कौन नहीं? चाहे वो गोहत्या पर से कर्नाटक में पाबंदी हटानेवाला सिद्धरमैया हो या उत्तर प्रदेश में नए बूचड़खानों के लिए टेंडर मंगवानेवाला अखिलेश यादव,ये लोग कभी हिन्दुओं के दोस्त या हितचिंतक हो ही नहीं सकते। इतना ही नहीं हम प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरफ काफी तेज कदमों से बढ़ रहे श्रीमान् नरेंद्र मोदी जी से भी स्पष्ट शब्दों में यह जानना चाहते हैं,बल्कि हम उनके मुखारविन्द से यह सुनना चाहते हैं कि वे प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद से गोहत्या पर रोक लगाने का कानून बनवाएंगे।
                        मित्रों,जबकि 85 प्रतिशत मुसलमान पहले से ही आरक्षण के दायरे में हैं फिर भी मात्र 15 प्रतिशत अगड़े मुसलमानों को आरक्षण देने की जी-तोड़ कोशिश की जा रही है। क्या अगड़े मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए पिछड़ी जाति के हिन्दू जिम्मेदार हैं? फिर क्यों उनका कोटा कम करके अगड़े मुसलमानों को संविधान की खुलेआम अनदेखी करते हुए धर्म के आधार पर आरक्षण देने की नापाक कोशिश की जा रही है?
                                    मित्रों,हमारे छद्म धर्मनिरपेक्ष नेता आज देश पर मरनेवालों पर आँसू नहीं बहाते,उत्तराखंड में उनकी लापरवाही के चलते मारे गए हजारों बेगुनाह हिन्दुओं की लाशों पर भी आँसू बर्बाद नहीं करते बल्कि वे आँसू बहाते हैं मुस्लिम आतंकियों की मौत और गिरफ्तारी पर। क्या इसको सर्वधर्मसमभाव का नाम दिया जा सकता है? क्या इस तरह की आत्मघाती रणनीति अपनाकर देश से आतंकवाद का खात्मा किया जाएगा?
                                         मित्रों,कुल मिलाकर इस सारी मगजमारी का लब्बोलुआब यह है कि देश की दुर्दशा इसलिए हो रही है क्योंकि इस देश के बहुसंख्यक अर्थात् हिन्दू एक नहीं हैं। कम-से-कम हिन्दुओं को तो इस संकट-काल में देशहित में एक हो ही जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर वो दिन दूर नहीं जब इस देश का एक नाम हिन्दुस्थान या हिन्दुस्तान न होकर चीन या पाकिस्तान हो जाएगा। आज नेफा से लेकर राजस्थान तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे हिन्दुस्थान को कांग्रेस की लुटेरी और देशबेचवा सरकार ने अपनी शत्रुतापूर्ण नीतियों के चलते खतरे में डाल दिया है। चूँकि हमारा धर्म इस देश और पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म है इसलिए इस देश की अस्तित्व-रक्षा के प्रति अगर किसी की पहली जिम्मेदारी बनती है तो वो हम हिन्दुओं की। वैसे अगर दूसरे धर्मवाले देशभक्त भी इस परमपुनीत कार्य में अपना महती योगदान देना चाहें तो हम तहेदिल से उनका स्वागत करेंगे। और हिन्दुओं को भी एक कुछ इस तरह से होना चाहिए कि हमारे देश की एकमात्र बहुसंख्यकवादी राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को अकेले ही दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हो जाए और अल्पसंख्यकवादी देशबेचवा नेताओं की दाल चुनावों के बाद किसी भी सूरत में गलने नहीं पाए।
                       मित्रों,हम हिन्दू एक होंगे तो न केवल अपने देश में ही हमारे धर्माम्बलंबियों की स्थिति सुधरेगी बल्कि हमारे पड़ोसी देशों में भी हिन्दुओं की स्थिति में सुधार आएगा। तब पाकिस्तान में हिन्दुओं की बहु-बेटियों का दिन-दहाड़े अपहरण नहीं होगा और उनको अपनी मातृभूमि छोड़कर प्राण-प्रतिष्ठा बचाकर भारत नहीं भागना पड़ेगा। हमें हमेशा यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि दुनिया में भारत के अलावा ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जहाँ कि बहुसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनकर रहना पड़ता हो। 

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

बगलाखड्गमालामन्त्रः

यह स्तोत्र शत्रुनाश एव परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है ।

साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास - कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -


मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।

मानस-पूजनः- इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।


खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।

खाद्य पदार्थ मे सूअर की चर्बी

हम विदेशी खाना तो खाते है पर वा किस चीज़ से बनता इस पर ध्यान नहीं देते |अधिकतर विदेशी खाने मे चर्बी पाया जाता है | देखिए ना बताया तो यही जा रहा है कि जहां भी किसी पदार्थ पर लिखा दिखे
E100, E110, E120, E 140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252,E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475,E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542,E570, E572, E631, E635, E904
समझ लीजिए कि उसमे सूअर की चर्बी है। जिसमे मुख्य हैं टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, च्युंग गम, चॉकलेट, मिठाई, बिस्कुट, कोर्न फ्लैक्स, टॉफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ आदि।  तो अब खाने से पहले आवश्या जाँच कर लें |

बुधवार, 24 जुलाई 2013

मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति जागरण

मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या सात बताई गई है। इन चक्रों के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण एवं गोपनीय जानकारी यहां दी गई है। यह जानकारी शास्त्रीय, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक है-

(1) मूलाधार चक्र - गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास है ।

(2) स्वाधिष्ठान चक्र - इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुरियाँ हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।

(3) मणिपूर चक्र - नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं ।

(4) अनाहत चक्र - हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है । यह सोता रहे तो लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे ।

(5) विशुद्धख्य चक्र - कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है

(6) आज्ञाचक्र - भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है । इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं ।

(7) सहस्रार चक्र - सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है । शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है । वहाँ से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है ।

कुण्डलिनी जागरण: विधि और विज्ञान::
कुंडलिनी जागरण का अर्थ है मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना। यह शक्ति सभी मनुष्यों में सुप्त पड़ी रहती है। कुण्डली शक्ति उस ऊर्जा का नाम है जो हर मनुष्य में जन्मजात पायी जाती है। यह शक्ति बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य को प्राप्त है। इसे जगाने के लिए प्रयास या साधना करनी पड़ती है। जिस प्रकार एक नन्हें से बीज में वृक्ष बनने की शक्ति या क्षमता होती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य में महान बनने की, सर्वसमर्थ बनने की एवं शक्तिशाली बनने की क्षमता होती है। कुंडली जागरण के लिए साधक को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्तर पर साधना या प्रयास पुरुषार्थ करना पड़ता है। जप, तप, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, योग आदि के माध्यम से साधक अपनी शारीरिक एवं मानसिक, अशुद्धियों, कमियों और बुराइयों को दूर कर सोई पड़ी शक्तियों को जगाता है। अत: हम कह सकते हैं कि विभिन्न उपायों से अपनी अज्ञात, गुप्त एवं सोई पड़ी शक्तियों का जागरण ही कुंडली जागरण है। योग और अध्यात्म की भाषा में इस कुंडलीनी शक्ति का निवास रीढ़ की हड्डी के समानांतर स्थित छ: चक्रों में माना गया है। कुण्डलिनी की शक्ति के मूल तक पहुंचने के मार्ग में छ: फाटक है अथवा कह सकते हैं कि छ: ताले लगे हुए है। यह फाटक या ताले खोलकर ही कोई जीव उन शक्ति केंद्रों तक पहुंच सकता है। इन छ: अवरोधों को आध्यात्मिक भाषा में षट्-चक्र कहते हैं। ये चक्र क्रमश: इस प्रकार है: मूलधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धाख्य चक्र, आज्ञाचक्र। साधक क्रमश: एक-एक चक्र को जाग्रत करते हुए। अंतिम आज्ञाचक्र तक पहुंचता है। मूलाधार चक्र से प्रारंभ होकर आज्ञाचक्र तक की सफलतम यात्रा ही कुण्डलिनी जागरण कहलाता है।

बुधवार, 17 जुलाई 2013

स्वास्थ्य के लिये टोटके

1) अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार औषधि सेवन के पश्चात् भी 

स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से आरम्भ करके लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का 

पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उबार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को 

खिला दें। अवश्य ही इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर टोटके की अवधि में 

रोगी ठीक हो जाता है, तो भी प्रयोग को पूरा करना है, बीच में रोकना नहीं चाहिए।

2) अमावस्या को प्रात: मेंहदी का दीपक पानी मिला कर बनाएं। तेल का चौमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के 

दाने, कुछ सिन्दूर, 2 बूंद दही डाल कर 1 नींबू की दो फांकें शिवजी या भैरों जी के चित्र का पूजन कर, जला 

दें। महामृत्युजंय मंत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग-शोक दूर करने की भगवान से 

प्रार्थना कर, घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुएं में नींबू सहित डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस दिन 

एक ब्राह्मण -ब्राह्मणी को भोजन करा कर वस्त्रादि का दान भी कर दें। कुछ दिन तक पक्षियों, पशुओं और

 रोगियों की सेवा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भूत बाधा, मानसिक अशांति 

निश्चय ही दूर होती है।

3) अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले 

तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का 

तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 

बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहाँ मिलेगा, 

इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है, केवल भैंसे को ही श्रेष्ठ रहती है। 

शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें।

4) पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।

5) घर से बीमारी जाने का नाम न ले रही हो, किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र ले 

कर उसे हांडी में पिरो कर रोगी के पलंग के पाये पर बांधने से आश्चर्यजनक परिणाम मिलता है। उस दिन

 से रोग समाप्त होना शुरू हो जाता है।

6) यदि आपका बच्चा बहुत जल्दी-जल्दी बीमार पड़ रहा हो और आप को लग रहा कि दवा काम नहीं कर 

रही है, डाक्टर बीमारी खोज नहीं पा रहे है। तो यह उपाय शुक्ल पक्ष की अष्टमी को करना चाहिये। आठ 

गोतमी चक्र ले और अपने पूजा स्थान में मां दुर्गा के श्रीविग्रह के सामने लाल रेशमी वस्त्र पर स्थान दें। मां 

भगवती का ध्यान करते हुये कुंकुम से गोमती चक्र पर तिलक करें। धूपबत्ती और दीपक प्रावलित करें।

धूपबत्ती की भभूत से भी गोमती चक्र को तिलक करें। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे की 11 माला जाप 

करें। जाप के उपरांत लाल कपड़े में 3 गोमती चक्र बांधकर ताबीज का रूप देकर धूप, दीप दिखाकर बच्चे के

 गले में डाल दें। शेष पांच गोमती चक्र पीले वस्त्र में बांधकर बच्चे के ऊपर से 11 बार उसार कर के किसी 

विराने स्थान में गड्डा खोदकर दबा दें। आपका बच्चा हमेशा सुखी रहेगा।

7) यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तो ---आश्विन मास की त्रयोदशी को नित्य कर्म से निपट कर 

सात्विक भाव से कुशासन पर बैठकर गोघृत का दीपक जलाकर नीचे लिखे मन्त्र का 128000 बार जाप 

करें-अच्युताय नमः अनन्ताय नमः गोविन्दाय नमः। यदि एक दिन में मन्त्र पूर्ण न हो तो दूसरे दिन 

निराहार रहकर मात्र गाय का दूध पीकर पूरा करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा और दशांश का इस मन्त्र से 

हवन करें। बाद में रोगी व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मन्त्र का जाप करेंगे तो रोगी व्यक्ति को 

स्वास्थ्य लाभ होगा। भगवान्‌ धन्वन्तरि का कथन है कि अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारण-भेषजात्‌। 

नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्‌। अर्थात्‌ अच्युत, अनन्त और गोविन्द के नामों का मन में 

जाप करने से सम्पूर्ण रोगों का नाश हो जाता है, इसमें सन्देह नहीं है।

तुलसी एक 'दिव्य पौधा'

भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र 

माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर 

में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का 

पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा 

परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ 

करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। 

तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले 

औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में 

सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

1. लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर 

रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।

2. पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर 

गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से 

आराम मिलता है।

3. पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस 

बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें 

और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।

4. बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और 

एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन 

बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।

5. खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया 

जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल 

पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत 

मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस 

पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

6. सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की 

लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-

साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।

7. श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी 

उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा 

पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी 

के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।

8. गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो 

गई  तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह 

महीने में फर्क दिखेगा।

9. हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों 

के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
10. तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।

11. मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां 

फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का 

संक्रमण दूर हो जाता है।

12. त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को 

प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा 

ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया 

गया है। तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।

13 . सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत 

साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा 

कारगर साबित होती है।

14. सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। 

तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।

15. आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित 

होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।

16. कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस 

मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।

17. ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।

18. तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता 

है।

19. कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।

20. तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट 

फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।

21. तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।

22. तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।

23. बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल 

से बचाव रहेगा।

24. शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो 

जाता है।

25. तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो 

जाता है।

26. तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-

शक्ति में वृध्दि होती है।

27. रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने 

से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। 

तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की 

तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में 

तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ 

द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने 

वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर 

सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के 

अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते 

हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

28. तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है 

इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला 

हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता 

डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से 

सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह 

लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह 

त्रिदोषनाशक है।

शनिवार, 13 जुलाई 2013

धर्मनिरपेक्षता है एक राक्षसी भावना

धर्म की बड़ी विस्तृत परिभाषा है। इसके विभिन्न स्वरूप हैं। संसार की सबसे प्यारी चीज का नाम है-धर्म। आप सड़क पर चले जा रहे हैं, किसी की अचानक दुर्घटना हो जाती है, आप रूकते हैं, और अपने आप ही उधर सहायता के लिए दौड़ पड़ते है। सहायता के लिए आपके हृदय में करूणा उमड़ी-इस प्रकार आपकी करूणा का यह भाव उस समय आपका धर्म बन गया। जिसने भीतर की जाति, पंथ, सम्प्रदाय की कई दीवारों को गिराया और करूणा की नौका पर तैरती आ रही आपकी मानवता किसी के प्राणों की रक्षक बन गयी। कहीं यह आपका धर्म किसी के प्रति संवेदना व्यक्त करने में प्रकट होता है, कहीं सहानुभूति व्यक्त करने में प्रकट होता है। कहीं कोई कसाई मुर्गा, बकरा या किसी अन्य पशु को काट रहा होता है तो वहां आप दयाभाव से भर जाते हैं, तब आपका धर्म आपका दयाभाव बनकर आता है। कहीं आप किसी पर कृपालु हो जाते हैं तो आपकी कृपालुता वहां आपका धर्म बन जाती है।af उत्तेजना के क्षणों में आपका धर्म आपके लिए संयम, मोह के क्षणों में समभाव, घृणा के क्षणों में सदभाव, अकर्त्तव्य में कर्त्तव्यनिष्ठा, द्वेष में सम्मैत्री, शोक में उत्साह, रोग में जयवीविषा, अज्ञान में जिज्ञासा, आपत्ति में धैर्य, संबंधों की कटुता में सरसता, निंदा चुगली में वाचिक तप, बड़प्पन मिलने पर अहंकार शून्यता, स्वास्थ्य के लिए शरीर साधना, भवपार पाने के लिए ईश्वर की आराधना, आपके कार्यालय में अनुशासन का भाव इत्यादि बन जाता है। ये सभी धर्म के विभिन्न स्वरूप हैं। ये सारे भाव हमारी मानवता को ही बलवती करते हेँ उसे मुखरित करते हैं, और अंतत: उसी में विलीन हो जाते हैं। यह स्वचालित व्यवस्था है जो सारे विश्व को संचालित कर रही है। इन और इन जैसे जीवन प्रद भावों को अपनाकर चलना प्रत्येक मनुष्य के लिए उत्तम है। यही मेधा की उपासना है। क्योंकि संसार के प्रत्येक झंझावात में हमारी मेधा ही हमारा मार्गदर्शन करती है। ऐसे दिव्य भावों को अपनाकर चलना ही धर्म सापेक्षता कहलाती है। इन उच्च और जीवनप्रद भावों को न अपनाना ही धर्म निरपेक्षता है। इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता एक राक्षसी भावना है जो व्यक्ति को संयम के स्थान पर उत्तेजित करना, समभाव के स्थान पर मोह में फंसना, कर्त्तव्यनिष्ठा के स्थान पर अकर्त्तव्य इत्यादि धर्म के विपरीत आचरण करना सिखाती है। इस प्रकार स्पष्टï हो जाता है कि धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा कितनी खोखली है और मानवता के लिए कितनी हानिकारक है? वास्तव में यह धर्मनिरपेक्षता मजहबी पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देती है। भारत के वेद, उपनिषद इत्यादि धर्म ग्रंथ अथवा आर्षग्रंथ धर्म के विभिन्न स्वरूपों को जीवन साधना का एक संगीत बनाकर प्रस्तुत करते हैं। मानो ये सबके सब हर प्रकार से धर्म को बलवती कर रहे हैं। आज इसी साधना को सरल ढंग से ‘हिंदुत्व’ प्रस्तुत कर रहा है। इसीलिए हिंदुत्व को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक जीवन पद्घति माना है, यह कोई सम्प्रदाय नही माना गया है। हिंदुत्व उच्च मानवीय जीवन के सारे मूल्यों को समाहित करके चलता है और वह मानवता का विकास चाहता है, उसके किसी अंग या भाग का नही। इसलिए हिंदुत्व को इस देश का प्राणतत्व घोषित करने की आवश्यकता है क्योंकि हिंदुत्व का लक्ष्य किसी को सताना नही है, अपितु सबका सब प्रकार से विकास करना और विकास के अवसर उपलब्ध कराना उसका लक्ष्य है। हमारा धर्म हमें संकीर्णताओं से मुक्त हर हमारे व्यक्तित्व को विस्तार देता है। जबकि मजहब हमें संकीर्णताओं में जकड़ता है। धर्म हमें विस्तार देता है और कहता है कि हाथों को खोल दो, फेेला दो, सबके प्रति सम्मैत्री के लिए, प्रेम के लिए, सहृदयता के लिए, सहानुभूति के लिए। एक व्यवस्था स्थापित कर दो संपूर्ण संसार में। जिससे सबके मध्य ऐसा प्रेमपूर्ण संबंध स्थापित हो जाए कि सारी मानवता एक परिवार बन जाए। अपने धर्म को शांति और व्यवस्था का पर्याय बना दो और इनके बीच ऐसा सामंजस्य स्थापित कर दो कि टूटे से भी ना टूट पाए। वेद ने हमें इस विषय में बड़े प्यार और रसभरे शब्दों में समझाया है। वेद ने जब हमसे कहा कि तू धर्म पर चल तो उस धर्म के लिए वेद ने शांतिपाठ की रचना की। क्योंकि धर्म और शांति का अन्योन्याश्रित संबंध है। उपद्रव, उत्पात, उन्माद और प्रत्येक प्रकार का उग्रवाद शांति में ही शामिल होता है। हमारे भीतरी जगत में यदि ये सारे विकार हैं तो बाहरी संसार शांतिमयी हो ही नही सकता। इसलिए हमारी आराधना, हमारी प्रार्थना, हमारी याचना और हमारी कामना अंन्तर्मुखी होनी चाहिए। पहले अंतर्मन पवित्र होना चाहिए। तब बाहर शांति होगी, इसलिए धर्म हमारी अंतर्मुखी प्रवृत्ति का नाम है। वह हमारे भीतरी जगत को शांत, पवित्र और निर्मल बनाता है, उसे सहज, सरल और उत्तम बनाता है। जबकि मजहब हमारे भीतरी जगत में व्याप्त उपद्रव, उत्पात, उन्माद और उग्रवाद की बारूद के ढेर में आग लगाता है। इसलिए मजहबी उन्माद से ग्रस्त व्यक्ति ‘फिदायीन’ बन जाता है। आज के विश्व की समस्या ही ये है कि हर व्यक्ति एक ‘फिदायीन’ बना घूम रहा है। भीतरी जगत में जातपात पंथ, सम्प्रदाय, भाषा, प्रांत, क्षेत्र, गांव, परिवार आदि की बड़ी बडी दीवारें खड़ी हैं। संकीर्णताओं के घेरे में आत्मा रूपी पंछी तड़प रहा है। आईए!वेद की शांति के आदर्श का रसास्वादन लेते हैं। ओउम् द्यौ: शन्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शांति रोषधय: शांन्ति। वनस्पतय: शांन्तिर्विश्वे देवा: शांनितर्ब्रहम् शांति: सर्व शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्ति रेधि। (यजु. 26/16)
वेद ने कहा कि द्यौ, अंतरिक्ष, पृथ्वी, जल, औषधियां, वनस्पतियां, संपूर्ण विश्व, विश्व का रचयिता ब्रह्म और स्वयं शान्ति की भावना ये सब अपने आप में शांत हैं, व्यवस्थित हैं, पूरी तरह सिस्टेमेटिक है, कहीं कोई उपद्रव नही, उत्पात नही, किसी प्रकार का कोई उग्रवाद नही। सारे के सारे अपने मर्यादा पथ में रहकर या अपनी अपनी साधना में लगे रहकर शान्ति का संगीत निकाल रहे हैं। हे, अशान्त मना मानव ! तू शांति के इस संगीत का, मधुरस का दीवाना बन और फिर बड़ी मस्ती से उस दीनदयालु ईश्वर से कह कि ‘शांन्ति: सा मा’ अर्थात जिस व्यवस्था से द्यौलोक से लेकर वनस्पतियां तक व्यवस्थित हैं, शांति में झूम रही हंै, वही शांति हे जगन्नियन्ता तू मुझे भी दे। सारा संसार आज अव्यवस्थित है। इसके शांति के गीत में भी अव्यवस्था है, असंतुलन है, संकीर्णता है, और कुटिलता है। लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना इसने शांति के लिए की, लेकिन विभिन्न देशों से करोड़ों डालर खर्च कराके बनी वह शानदार बिल्डिंग विश्व में शांति का मंदिर नही बन पायी। क्योंकि वहां जितने भर भी पुजारी बैठे थे वे सब के सब स्वयंभू पुजारी थे। किसी की भी पूजा के पीछे साधना की शक्ति नही थी, भक्ति नही थी। सबके सब एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए स्वयं अव्यवस्थित असंतुलित और कुटिल होकर बैठे थे। परिणाम स्वरूप विश्व और भी अधिक तनाव की ओर बढ़ने लगा और द्वितीय विश्व युद्घ की विनाशकारी विभीषिकाओं में जाकर भारी विनाश का साक्षी बना। कारण था कि धर्म को व्यवस्था का और शांति का पर्यायवाची नही माना गया। बल्कि धर्म को (मजहब को) परस्पर ईर्ष्याभाव, द्वेषभाव व घ़णा के भावों का पर्याय बना दिया गया ये समझा ही नही गया कि शांति कहते किसे हैं, और इसकी मूल परिकल्पना का आधार क्या है? द्यौ से लेकर वनस्पतियों को किसी सृष्टïा की बेतरतीब चीजें समझा गया और माना गया कि इन सबमें उत्तम तो मानव है। इसलिए उसे किसी के धर्म को समझने की और उसका अनुकरण करने की आवश्यकता नही है। धर्म तो हम बनाएंगे, हम स्थापित करेंगे और अपने अपने धर्म में सारी मानवता को रंगने के लिए तलवारों का सहारा लेंगे। भौतिक धर्म नैसर्गिक धर्म पर हावी हो गया, फलस्वरूप सारा संसार अव्यवस्था और अशांति का शिकार हो गया। दुर्भाग्य है इस मानवता का कि आज भी इस विश्व में व्यवस्था के कथित पैरोकार भौतिक धर्मों की शरण में जाकर ही विश्वशांति की तलाश कर रहे हैं। नैसर्गिक और वास्तविक धर्म कहीं विस्मृत कर दिया गया।
हमारे ऋषि पूर्वजों को वेद ने बताया था-
ओउम! यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते।
तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरू:।।
अर्थात शांति और व्यवस्था की स्थापना के लिए जिस मेधा की उपासना हमारे ऋषि पूर्वज देवगण करते आए हैं, आज बुद्घि प्रदाता दयानिधे…! वही मेधा तू मुझे भी दे। ऐसी मेधा जो संकीर्णताओं से मुक्त हो, जो मेरे व्यक्तित्व को विस्तार दे जो मुझे सबका और सबको मेरा बनाने में सहायता करे, मुझे दो। मैं सारे जगत में व्याप्त धर्म की व्यवस्था के मदमस्त संगीत का रसिया बनूं, और उस संगीत से झरने वाले अमृत रस को सारे संसार में बिखेरता घूमूं, जिससे कि विश्व में सर्वत्र ज्योतिर्लिंग स्थापित हो जाए। शांति की ऐसी प्रार्थना कहीं पर भी नही है। इसीलिए आज शांति के कहीं दर्शन नही हैं। विश्व को धर्म के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है। जो धर्म है उसकी चर्चा नही होती और जो धर्म नही है उसे पूजा जा रहा है। उसी के नाम पर विश्व में खेमे बंदियां बढ़ रही हैं, उग्रवाद, आतंकवाद, उन्माद, उत्पात इत्यादि फैल रहे हैं। इन सबके बीच में शांति खोजी जा रही है। मरने पर शांति के द्वीप जलाए जाते हैं, मजारों पर रोशनी की जाती है, और जीते जी द्वीपों को बुझाया जाता है अंधेरा फैलाया जाता है। इस दोरंगी चालों के बीच शांति या तो शमशान में मिल रही है या फिर आतंकी घटनाओं के बाद फैली लाशों के पास दीखती है। यह अलग बात है कि आप उसे शांति की संज्ञा ना दें। परंतु आज के विश्व का सच यही है। धर्मनिरपेक्षता धर्म से निरपेक्ष भावों को बताती है। बात स्पष्टï है कि जीवनप्रद मूल्यों के विपरीत आचरण करना ही धर्मनिरपेक्षता है, जबकि मनुष्य के लिए धर्म से निरपेक्ष रह पाना संभव नही है। यदि मनुष्य ऐसी सोच बनाता है तो निश्चित रूप से यह उसके विनाश का रास्ता है। आवश्यकता धर्म के विषय में भ्रमित होने की नही है, अपितु धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझकर आत्मसात करने की है।