मंगलवार, 25 नवंबर 2014

महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना

इस साधना की विशेषता है की ये भगवान् महाकाल भैरव के तीक्ष्ण स्वरुप के बटुक रूप की साधना है जो तीव्रता के साथ साधक को सौम्यता का भी अनुभव कराती है और जीवन के सभी अभाव,प्रकट वा गुप्त शत्रुओं का समूल निवारण करती है.विपन्नता,गुप्त शत्रु,ऋण,मनोकामना पूर्ती और भगवान् भैरव की कृपा प्राप्ति,इस १ दिवसीय साधना प्रयोग से संभव है. बहुधा हम प्रयोग की तीव्रता को तब तक नहीं समझ पाते हैं जब तक की स्वयं उसे संपन्न ना कर लें,इस प्रयोग को आप करिए और परिणाम बताइयेगा.



ये प्रयोग रविवार की मध्य रात्रि को संपन्न करना होता है.स्नान आदि कृत्य से निवृत्त्य होकर पीले वस्त्र धारण कर दक्षिण मुख होकर बैठ जाएँ. गुरुदेव और भगवान् गणपति का पंचोपचार पूजन और मंत्र का सामर्थ्यानुसार जप कर लें तत्पश्चात सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें,जिस के ऊपर काजल और कुमकुम मिश्रित कर ऊपर चित्र में दिया यन्त्र बनाना है और यन्त्र के मध्य में काले तिलों की ढेरी बनाकर चौमुहा दीपक प्रज्वलित कर उसका पंचोपचार पूजन करना है,पूजन में नैवेद्य उड़द के बड़े और दही का अर्पित करना है .पुष्प गेंदे के या रक्त वर्णीय हो तो बेहतर है.अब अपनी मनोकामना पूर्ती का संकल्प लें.और उसके बाद विनियोग करें.

अस्य महाकाल वटुक भैरव मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः 

इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.

ऋष्यादिन्यास –

कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे
करन्यास -
ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ह्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
अङ्गन्यास-
ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्
अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.
नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||
इसके बाद निम्न मूल मंत्र की रुद्राक्ष,मूंगा या काले हकीक माला से ११ माला जप करें
ॐ ह्रीं वटुकाय क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं वटुकाय स्वाहा ||
Om hreeng vatukaay kshroum kshroum aapduddhaarnaay kuru kuru vatukaay hreeng vatukaay swaha ||
प्रयोग समाप्त होने पर दूसरे दिन आप नैवेद्य,पीला कपडा और दीपक को किसी सुनसान जगह पर रख दें और उसके चारो और लोटे से पानी का गोल घेरा बनाकर और प्रणाम कर वापस लौट जाएँ तथा मुड़कर ना देखें.
ये प्रयोग अनुभूत है,आपको क्या अनुभव होंगे ये आप खुद बताइयेगा,मैंने उसे यहाँ नहीं लिखा है. तत्व विशेष के कारण हर व्यक्ति का अनुभव दूसरे से प्रथक होता है. सदगुरुदेव आपको सफलता दें और आप इन प्रयोगों की महत्ता समझ कर गिडगिडाहट भरा जीवन छोड़कर अपना सर्वस्व पायें यही कामना मैं करत हूँ.

सोमवार, 24 नवंबर 2014

हनुमत माला का निर्माण

साधना में माला का अपना ही महत्व होता है.उसी प्रकार साधक हनुमान साधनाओं में भी पृथक पृथक मालाओ का प्रयोग करते है.आज हम आपको यह बताने जा रहे है की,किस प्रकार जाप माला में श्री हनुमानजी को स्थापित करे,इस क्रिया को माला पर संपन्न करने के बाद माला बजरंग माला में परिवर्तित हो जाती है.साधक जब भी हनुमान साधना करे तो इसी माला से करे.क्युकी इस माला में हनुमान जी की ऊर्जा निवास करती है.और उनकी साधना उनकी ही ऊर्जा से निर्मित माला से की जाये तो सोने पर सुहागा हो जाता है.
इसके लिए आप किसी भी मंगलवार के दिन कोई भी माला ले लीजिये,मूंगा अथवा रुद्राक्ष माला श्रेष्ठ है.माला को जल से धोकर लाल वस्त्र पर रख दीजिये।अब साधक थोड़ी सी हल्दी शुद्ध जल में घोल ले.और निम्न मन्त्र को एक बार पड़े और एक मनके पर बिंदी लगा दे.इस प्रकार १०८ मनको पर लगाये।सुमेरु पर नहीं लगाना है.
ॐ फ्रौं नमः ( Om Froum Namah )
इस क्रिया के पश्चात अब निम्न मंत्र को २१ बार पड़े और सुमेरु पर २१ बिंदी लगाये
ॐ ह्रौं रूद्राय नमः ( Om Hroum Rudraay Namah )
इस क्रिया के पश्चात निम्न मंत्र को पड़ते हुए पुनः एक एक मनके पर बिंदी लगाये,इस मंत्र के द्वारा सुमेरु पर भी बिंदी लगाना है.
ॐ फ्रौं वायु पुत्राय नमः ( Om Froum Vaayu Putraay Namah )
इसके पश्चात निम्न मंत्र को १०८ बार पड़कर थोड़ा जल माला पर छिट दे.
ॐ हनु हनु हनु हनुमंताय फट ( Om Hanu Hanu Hanu Hanumantaay Phat )
तत्पश्चात २१ बिंदी सुमेरु पर लगाये निम्न मंत्र के द्वारा।
ॐ ह्रौं फ्रौं रूद्रस्वरुप हनुमंताय नमः ( Om Hroum Froum Rudraswaroop Hanumantaay Namah )
लीजिये हो गया हनुमत माला का निर्माण,अब आप जब भी हनुमान साधना करे,ईसि माला से करे.जिससे हनुमत कृपा आप पर बरसेगी और सफलता के अवसर बड़ जायेंगे। जिसे बार बार नज़र दोष लग जाते हो,या भय लगता हो,तो उस व्यक्ति को भी यह माला धारण करवाई जा सकती है.कोई गृह यदि कष्ट दे रहा हो तो माला का निर्माण करे और हनुमानजी से समबन्धित गृह की अनुकूलता हेतु प्रार्थना करके इसे धारण कर ले.समस्या का अंत हो जायेगा

पानी द्वारा आकर्षण मन्त्र


पानी द्वारा आकर्षण मन्त्र
|| ॐ नमो त्रिजट लम्बोदर वद वद अमुकी आकर्षय आकर्षय स्वाहा ||
विधि :- इस मन्त्र को जल पर 108 बार पढ़ फूंके, फिर अपने सिरहाने की तरफ रखकर सो जाये और मध्य रात्रि में उठकर इस पानी को पी ले ऐसा 21 दिन तक करे तो वह स्त्री स्वयं आपके पास चली आएगी | अमुकी की जगह उस स्त्री का नाम लेवे जिसका आकर्षण करना हैं |

शनिवार, 22 नवंबर 2014

नील सरस्वती साधना

देवी तारा दस महाविद्याओं में से एक है इन्हे नील सरस्वती भी कहा जाता है ! ये सरस्वती का तांत्रिक स्वरुप है
अब आप एक एक अनार निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ गणेश जी व् अक्षोभ पुरुष को काट कर बली दे ..
ॐ गं उच्छिस्ट गणेशाय नमः भो भो देव प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट .
.ॐ भं क्षं फ्रें नमो अक्षोभ्य काल पुरुष सकाय प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट ..
अब आप इस मंत्र की एक माल जाप करे ..
॥क्षं अक्षोभ्य काल पुरुषाय नमः स्वाहा॥
फिर आप निम्न मंत्र की एक माला जाप करे ..
॥ह्रीं गं हस्तिपिशाची लिखे स्वाहा॥
इन मंत्रो की एक एक माला जाप शरू में व् अंत में करना अनिवार्य है क्यों नील तारा देवी के बीज मंत्र की जाप से अत्यंत भयंकर उर्जा का विस्फोट होता है शरीर के अंदर .. ऐसा लगता है जैसे की आप हवा में उड़ रहे हो .. एक हि क्षण में सातो आसमान के ऊपर विचरण की अनुभति तोह दुसरे ही क्षण अथाह समुद्र में गोता लगाने की .. इतना उर्जा का विस्फोट होगा की आप कमजोर पड़ने लग जायेंगे आप के शारीर उस उर्जा का प्रभाव व् तेज को सहन नहीं कर सकते इस के लिए ही यह दोनों मात्र शुरू व् अंत में एक एक माला आप लोग अवस्य करना .. नहीं तोह आप को विक्षिप्त होने से स्वं माँ भी नहीं बचा सकती ..
इस साधना से आप के पांच चक्र जाग्रत हो जाते है तोह आप स्वं ही समझ सकते हो इस मंत्र में कितनी उर्जा निर्माण करने की क्षमता है .. एक एक चक्र को उर्जाओ के तेज धक्के मार मार के जागते है ..अरे परमाणु बम क्या चीज़ है भगवती की इस बीज मंत्र के सामने ?
सब के सब धरे रह जायेंगे ..
मूल मंत्र-
॥स्त्रीं ॥ ॥ STREENG ॥
जप के उपरांत रोज देवी के दाहिने हात में समर्पण व् क्षमा पार्थना करना ना भूले ..
साधना समाप्त करने की उपरांत यथा साध्य हवन करना .. व् एक कुमारी कन्या को भोजन करा देना ..अगर किसी कन्या को भोजन करने में कोई असुविधा हो तोह आप एक वक्त में खाने की जितना मुल्य हो वोह आप किसी जरुरत मंद व्यक्ति को दान कर देना ...
भगवती आप सबका कल्याण करे ..
जब भगवती का बीजमंत्र का एक लाख से ऊपर जप पूर्ण हो जाये तब उनके अन्य मंत्रो का जाप लाभदायी होता है
कुछ लॊग अपने आपको वयक्त नहीं कर पाते, उनमे बोलने की छमता नहीं होती ,उनमे वाक् शक्ति का विकास नहीं होता ऐसे जातको को बुधवार के दिन तारा यन्त्र की स्थापना करनी चाहिए ! उसका पंचोपचार पूजन करने के पश्चात स्फटिक माला से इस मंत्र का २१ माला जप करना चाहिए -
मंत्र - ॐ नमः पद्मासने शब्दरुपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा
२१ वे दिन हवन सामग्री मे जौ-घी मिलाकर उपरोक्त मंत्र का १०८ आहुति दे और पूर्ण आहुति प्रदान करे !
इस साधना से वाक् शक्ति का विकास होता है , आवाज़ का कम्पन जाता रहता है ! यह मोहिनी विद्या है एवं बहुत से प्रवचनकार,कथापुराण वाचक इसी मंत्र को सिद्ध कर जन समूह को अपने शब्द जालो से मोहते है ! अपने पास कुछ भी गोपनीय नहीं रख रहा सब आप लोगो से शेयर कर रहा हु !! प्रतिदिन साधना से पूर्व माँ तारा का पूजन कर एक -एक माला (स्त्रीम ह्रीं हुं ) तारा कुल्लुका एवं ( अं मं अक्षोभ्य श्री ) की अवश्य करे I

॥ ब्रह्म - उपासना ॥

!! श्री गुरुभ्यो नमः !!
विश्वं मायामयत्वेन रूपितं यत्प्रबोधतः ।
विश्वं च यत्स्वरूपं तं वार्तिकाचार्यमाश्रये ॥
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॥ ब्रह्म - उपासना ॥
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नारायण ! विचार करें : एक सच्ची घटना है : ईसा के उपदेश में लिखा है कि कभी कोई तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तू दूसरा गाल आगे कर देना । एक जगह रेल में एक आदमी चढ़ा , वह बड़ा हृष्टपुष्ट था । उसने एक आदमी से जगह बनाने के लिये कहा कि ज़रा सरक जा । जिससे कहा था वह दुबला - पतला आदमी था । उसने कहा नहीं सरकता। इसने देखा कि और कहीं जगह नहीं थी और वह लम्बी टांग करके बैठा था । इसलिये इसने थोड़ा सा धक्का दिया , उसका पैर मुड़ा और यह वहाँ बैठ गया । उस दुबले - पतले आदमी ने उस तगड़े आदमी को एक थप्पड़ मार दी । उसने गाल सहलाया और साथ में याद आया कि " मैं ईसाई हूँ , " उसने दूसरा गाल सामने कर दिया और कहा कि इस पर भी मार दे । वह दुबला आदमी गुस्से में तो था ही , उसने झट दूसरे गाल पर भी थप्पड़ मार दिया । अब पहलवान उठा , सोचा बाईबल में लिखा है कि कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल सामने करो ; दूसरे पर मारे तो क्या करो यह तो वहाँ लिखा नहीं है । उसने उस दुबले को उठाया और रेल के बाहर फेंक दिया ! कहा कि बाईबल की उतनी बात तो मान ली जितनी लिखी है । जितनी युक्तियाँ आपको याद रटाये जायेंगे , उतनी ही आप समझ पायेंगे । परिस्थिति बदल गई तो फिर अन्दर की वे ही वासनायें आपमें प्रकट होंगी । ईसा का भाव यह था कि किसी भी परिस्थिति में , किसी भी प्राणी को दुःख मत दो । जैसे शास्त्रों के अन्दर कहा " मा हिंस्यात् सर्वाणि भूतानि " किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो , यह इसका तात्पर्य हुआ । लेकिन जो व्यक्ति उस तात्पर्य को नहीं समझेगा , हृदय में नहीं उतारेगा , वह वही करेगा जो रेल वाले ने किया । इसी प्रकार जिस व्यक्ति ने इस तत्त्व - मीमांसा को स्वतः कर लिया , उसकी कृतार्थता हो गई । बाकी जितने साधन हैं , वे मनुष्य को कृतार्थ नहीं करते , अर्थात् उनमें कुछ - न - कुछ पाना शेष रह जाता है ।
नारायण ! महात्माओं में एक कथा प्रसिद्ध है कि " कौतुकपुर " नाम का एक नगर था । वहाँ " बहुस्वर्ण " नाम का राजा था । वह बहुतों को तरह - तरह के धन दान किया करता था । लेकिन उसका ही एक क्षत्रिय नौकर था जिसका नाम " यशोवर्मा " था । उसे वह कभी कुछ नहीं देता था । बाकी सबको देता था । यशोवर्मा जब कहे कि " मेरे को भी कुछ दे दो " तो राजा उस यशोवर्मा से कहे " क्या बताऊँ , मैं तो देना चाहता हूँ लेकिन { सूर्य की तरफ अंगुली दिखाकर कहे } यह नहीं देने देता । " वह बेचारा यशोवर्मा चुप रह जावे । एक बार सूर्यग्रहण का समय आया । यशोवर्मा ने कहा कि " आज तो सूर्य को ग्रहण लगा हुआ है , इसलिये छिपा हुआ है , अब ना नहीं कर सकते , आज तो मेरे को कुछ दे दो । " राजा बहुस्वर्ण ने विचार किया कि अब तो दे दूँ , नहीं तो बुराई होगी । उसने उसे कुछ धन और कपड़े आदि दे दिये । वह ले गया । लेकिन वह तो थोड़े दिनों में खत्म हो गये । अब वह बेचारा रोज देखे कि कब सूर्यग्रहण आये और कब मुझे कुछ मिले । रोज़ - रोज़ तो ग्रहण आता नहीं , ग्रहण का कोई ठिकाना नहीं है । पहले तो यशोवर्मा के पास धन नहीं था , इसलिये धन का अभाव उतना नहीं खटकता था । धन पास में न हो तब तक दुःख कम होता है । होकर छिन जाये तब दुःख ज़्यादा होता है । इस दुःख को देने का तरीका आजकल के लोगों ने बड़ा सुन्दर निकाला है । आपने दो सौ रुपये वाले की तन्ख्वाह ढाई सौ रुपये कर दी । पहले महीने में उसको पचास रुपये ज़्यादा खर्च करने को मिल गये , अब उसे ज़्यादा चीजें खरीदने की आदत हो गई , दूसरे महीने में आपने इतनी महँगाई बढ़ा दि कि जो पचास रुपये तनख्वाह बढ़ी थी , वह भी खत्म और तीसरे महीने बाकी 250 दो सौ पचास भी खत्म हो गये ! इससे अच्छा तो महँगाई न बढ़ाते और उस बेचारे के दो सौ रखे रहते तो वह सुखी रहता । लेकिन जैसे किसी काल में राज्य की , सेठों की यह इच्छा रहती थी कि जो हमारी प्रजा हैं , जो हमारे नौकर हैं , वे सुखी रहें , वैसे ही आज राज्य से मालिकों तक सबकी यह इच्छा रहती है कि जो हमारे अन्तर्गत हैं , वे सुखी न हो पायें । एक - एक युग की एक - एक इच्छा होती है , क्या करेंगे ! उनको सुखी देखकर प्रसन्न नहीं होते हैं । एक जगह कहीं हम गये हुए थे तो उसका नौकर तंग पायजामा पहने हुआ था । हम उसे नहीं समझते , लेकिन वह मालकिन हमसे कहने लगी , " देखिये स्वामी जी ! क्या जमाना आया है ! यह नौकर ऐसा पायजामा पहनता है । " हमने कहा , बात तो ठीक है लेकिन सवेरे , तेरा लड़का भी ऐसा ही पायजामा पहने था । कहने लगी " वह और बात है । " यदि बुरी है तो दोनों के लिये बुरी मानो , लेकिन मन में भाव यह है कि अच्छा है , इसलिये मेरा लड़का तो पहने, नौकर क्यों पहने ? हृदय में उन्हें देखकर प्रसन्नता नहीं है । इस प्रकार राजा और प्रजा का व्यवहार है ।
नारायण ! जब पहली बार यशोवर्मा को धन मिल गया तो उस बेचारे की आदत बिगड़ गई। अब सूर्यग्रहण का क्या ठिकाना , कब आये ? कभी सास में तो कभी दो - तीन साल में एक बार आये , कभी न आये । उसकी बीबी घर में रोज झगड़ा करे कि जब एक बार लाये तो ग्रहण क्यों नहीं करते । वह बेचारा कहे कि " यह मेरे हाथ में नहीं है । " उसने कहा " करना पड़ेगा । तेरे को मेरे से प्रेम नहीं है , होता तो ग्रहण लगा लेता । " उसने कहा " यह तो राहु लगाता है । " बड़ा दुःखी होकर उसने सोचा कि यह जीवन रखने में अब कोई फायदा नहीं है । वहाँ से चलकर " विन्ध्याचल " { मिर्ज़ापुर के पास } गया । वहाँ देवी का एक मन्दिर है । वहाँ उसने कहा " हे भगवती ! अब इस शरीर को रखने से कोई फायदा नहीं है । मालिक देना नहीं चाहता और बीबी उसके बिना घर में रखना नहीं चाहती । इसलिये जीवन का कोई फायदा नहीं । या तो तू मेरे को सुखी कर या आमरणांत अनशन { प्रायोववेशन रहकर } रखकर शरीर छोड़ दूँगा । यह तब तक करूँगा जब तक मरूँगा नहीं या जब तक इच्छा पूरी नहीं होगी । " आजकल की भूख हड़ताल नहीं समझ लेंगे कि कड़ाह प्रसाद खाते हुए भूख हड़ताल चलती रहती है ! सच्चा प्रायोपवेशन था । वह वहीं बैठ गया । कुछ दिन बाद भगवती ने सोचा कि यह कलंक का टीका लगायेगा । भगवती प्रसन्न हो गई , पूछा " क्या चाहिये ? " यशोवर्मा ने कहा " सुख चाहिये । " भगवती ने कहा " गज़ब हो गया , तू सुख चाहता है और संसार में सुख नाम की चीज़ कहाँ से आये ? सुख कई तरह के होते हैं धन का सुख , भोग का सुख , धर्म का और ज्ञान का सुख होता है। इसलिये तू यह बता कि तेरे को कौन - सा सुख चाहिये ? " उसने कहा " माते ! मैंने आज तक इन चारों में से कोई सुख नहीं देखा । न मेरे को अर्थ मिला , न मेरी कभी काम - भोग की इच्छा पूर्ण हुई , न मैंने कभी त्याग या धर्म किया और मोक्ष का तो नाम आज सुना है। इसलिये तू ही बता दे या जो चाहे सो दे दे । " भगवती ने कहा " ऐसा नहीं होगा । मैं तेरे को ठिकाना बता देती हूँ , तू खुद जाकर कुछ पता लगा ले । फिर तेरे को जो चीज़ अच्छी लगे , सो मांग लेना । "
नारायण ! श्री भगवती ने यशोवर्मा को चार जनों का ठिकाना बता दिया कि " अर्थवर्मा " , " भोग - गुप्त " , " त्याग - शर्मा " और " ज्ञान - गिरि " अमुक - अमुक देश में अमुक - अमुक स्थान पर रहते हैं । उनके पास जाकर तू अध्ययन करके आना और फिर जो ठीक लगे सो मांग लेना । यशोवर्मा ने भगवती की बात मान लिया । सबसे पहले यशोवर्मा अर्थवर्मा के पास चलकर गया । 
नारायण ! श्री माता भगवती के बात को मानकर यशोवर्मा अध्ययन करने के लिए सबसे पहले " अर्थवर्मा " के पास पहुँचा , वहाँ देखा कि सेठ की बहुत बड़ी कोठी है । तब तक बैंक का जमाना नहीं आया था , इसलिये सोने की गिन्नियों को थैली में भरकर देते थे और गिनते नहीं थे , तोलते थे । उसने देखा कि गिन्नियों का मनों में आदान - प्रदान हो रहा है। वह तो यह देखकर हैरान हो गया कि मैंने तो जन्म भर एक धेला नहीं देखा और यहाँ बोरे ही बोरे भरे हैं ! उसने सेठ से कहा कि " मैं विन्ध्याचल से आया हूँ और कुछ दिन तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ । " सेठ ने कहा " ठीक है , मैं भी भगवती का भक्त हूँ , तुम बैठो , साथ ही चलेंगे । " काम - काज के बाद घर पहुँचे । जब भोजन करने बैठे तो उसको तो बढ़िया घी भरे सात पतरत वाले पराँठे और दाल भी जिसके ऊपर खूब घी तैर रहा था मिले , लेकिन खुद सेठ ने एक छोटा - सा सूखा फुलका और मूंग की दाल का पानी लिया और उबली हुई तोरई ली । उसने सेठ से पूछा " आपका आज कोई व्रत है क्या ? " उसने कहा " नहीं , " " जब व्रत नहीं है तो फिर मेरे को घी के सात परत वाले पराँठे और अपने को यह ? " सेठ ने कहा " क्या बताऊँ , मेरे को हजम नहीं होता । यह तो तू आज आया है, इसलिये तेरा साथ देने के लिये मैंने दो छोटे फुलके रख लिये हैं , नहीं तो मैं एक " सूप " नाम की चीज़ पीता हूँ । " दाल को ऐसा छान दो कि उसमें भी दाल का दाना न आये , वह " सूप " होता है । यशोवर्मा ने कहा गजब हो गया , फिर यह इतना सोने का आदान - प्रदान करता किस लिये है ? दूसरे दिन फिर दिन भर उसके साथ रहा , सेठ बेचारा खूब काम करता रहे और यह देखे कि बड़ा परिश्रम करता है । सोचा कि आज तो इसे खूब भूख लगी होगी , आज रात्रि को डटकर खायेगा । जब रात्रि को घर पहुँचे तो बढ़िया सुन्दर खीर बनी थी जिसमें सेर भर दूध को पाव भर बनाकर उसमें थोड़ा चावल , बादाम , पिस्ते , मेवे सब डाले जाते हैं ; खूब बढ़िया पुलाव बनाया था जिसमें मटर , पनीर सब डाला हुआ था ; खुम्बी का बढ़िया सुन्दर साग बनाया हुआ था । लेकिन उस रात भी बेचारे सेठ ने वही दाल का पानी लिया ! उसने पूछा " यह क्या बात , आज तो दिन भर मेहनत भी करते रहे , आज तो बढ़िया माल लो क्योंकि दिनभर परिश्रम किया है और परिश्रम से हजम हो जाता है । " सेठ ने कहा " आज कुछ लेना तो नहीं था , लेकिन मेरे को आधा पाव दूध दे दो और थोड़े से उबले चावल , { पुलाव नहीं } दे दो । इससे ज्यादा हिम्मत नहीं है । " दोनों में प्रेम हो गया और दोनों एक ही कमरे में सोये । रात को यशोवर्मा को स्वप्न आया कि चार बड़े - बड़े आदमी दण्ड लेकर आये हैं और अर्थवर्मा को पीट रहे हैं कि " आज तूने अपनी हस्ती से ज्यादा क्यों खाया ? तूने सवेरे दो फुलके खा लिये और रात में आधा पाव दूध और उबले चावल खा लिये । " उसने कहा " यह मिल गया , इसके कारण खाना पड़ा , मुझे छोड़ दो । " उन्होंने कहा " कैसे छोड़ दें , तेरे को रखवाली के लिये रखा है या इस तरह खाने के लिये ? " वह उठा तो देखता है कि अर्थवर्मा कराह रहा है , भात और दूध से वायु का गोला उठ रहा है । उस दिन बेचारो को वमन अर्थात् उल्टी हुई और सूप भी निकल गया । यशोवर्मा समझ गया कि स्वप्न में मुझे देवी ने दिखाया कि यहाँ डण्डे पड़ते हैं । सवेरे उसने कहा " मुझे आगे जाना है । " अर्थवर्मा ने कहा " दो - चार दिन और रहो । " उसने कहा " मुझे जो देखना था , सो देख लिया । " वहाँ से कान पकड़ कर निकला कि मुझे कभी भी धन नहीं लेना है , धन से यह हालत होती है ।
नारायण ! दूसरे ठिकाने पर भोगगुप्त के पास चला । दो - चार दिन के बाद उस शहर में पहुँचा जहाँ भोगगुप्त रहता था । एक बढ़िया मकान के बाहर की तरफ के एक कमरे में भोगगुप्त ठहरा हुआ था । यशोवर्मा ने जाकर पहले बाहर के लोगों से पूछा कि यहाँ भोगगुप्त का मकान कौन सा है ? किसी को पता नहीं था । अन्त में 11 ग्यारह नम्बर में पहुँचा , सोचा गलत तो नहीं हो सकता है क्योंकि देवी ने गलत ठिकाना नहीं दिया होगा। वहाँ के दरबान ने कहा " यह भोगगुप्त का मकान नहीं है , भोगगुप्त को तो हमारे मालिक ने ठहरा रखा है , है तो वह किसी काम का नहीं लेकिन फिर भी उसे ठहरा रखा है । " यशोवर्मा ने दरबान से कहा " मैं उनसे मिलने आया हूँ । " दरबान ने जाने दिया । अन्दर गया , देखा कि एक बढ़िया सुन्दर कमरे में भोगगुप्त बैठा हुआ है । कहा " मैं विन्ध्याचल से आया हूँ । " उसने हाथ जोड़कर कहा कि " मैं भी भगवती विन्ध्येश्वरी का भक्त हूँ , मेरे बड़े भाग्य कि आप आये । " पूछा " यह आपका मकान नहीं है ? " कहा " मैं इतने पैसे कहाँ से इकट्ठे करूँ जो बनाऊँ ? यह मकान मेरे दोस्त का है । " उसने सोचा " ठीक है , यहाँ धन नहीं है , भोग है । " कहा " एक - दो दिन साथ रहेंगे । " दिन में उसके साथ चला । वह एक दुकान से दूसरी दुकान में पहुँचा , सब जगह लोग उसे प्रेम से बिठाते । उसका दलाली का काम था , ज्यादा धन पास में नहीं था । लेकिन भोग तो करना ही था । दलाल का काम ही यह है कि इसका माल उसको और उसका माल इसको दिया । बेचारे ने कभी एक की खुशामद और कभी दूसरे की जी - हजूरी की , जिसका नतीजा यह हुआ कि शाम तक उसने पाँच सो रुपये बना लिये और शाम को यशोवर्मा से कहा कि अब " ओब्राय इण्टरकाण्टिनेण्टल " चलो या जो उस जमाने के साधन रहते होंगे । वे वहाँ गये तो पाँच सौ के पाँच खा - पीकर खत्म कर दिये । कहा " सबेरे की बात छोड़ो क्योंकि कौन जाने कल की खबर नहीं या जग में पल की खबर नहीं । " खा - पीकर घर पहुँचे तो दरबान ने पहला प्रश्न किया कि " आपने कल 25 रुपये उधार लिये थे , वह अभी तक नहीं दिये ? " भोगगुप्त का थोड़ा - सा मुँह सिकुड़ा कहा " कल ले लेना । " दरबान ने कहा " शरम नहीं आती । " कहा " दे दूँगा । " उसी समय हाथ की घड़ी उतार कर उसे दे दी । कहा " कहीं होटल में इसके साथ खाने के लिये चला गया था । " दोस्त ने कहा " आओ , अपने थोड़ी देर बातें करें । " यह वहाँ से पीकर आया था , ऊटपटांग बोलने लगा । दोस्त ने कहा " मैँने तेरे को सारी सुविधायें दी हैं , तुम शाम को मेरे से दो घण्टे बातें भी नहीं करते । " यशोवर्मा ने विचार किया " बड़ी फजीहत है , भोग तो सारे मिले हुए हैं , दूकान में हाँ जी , हाँ जी करता था , दरबान से भी दबकर रहता है । " रात में बेचारा सोया , शराब पी रखी थी तो उल्टियाँ होने लगीं " भोगे रोगभयम् । " यशोवर्मा ने निर्णय किया कि यहाँ इस जीवन में भी कोई तत्त्व नहीं है । दूसरे दिन सवेरे उठा , कहा " मैं तो जा रहा हूँ । " भोगगुप्त ने कहा " थोड़े दिन रहो । " कहा " भर पाये , अब जाने दो । "
नारायण ! वहाँ से चलकर कान पकड़े कि ऐसी चिंता में ग्रस्त होकर भोग करने से कोई फायदा नहीं है । भोग के बिना अर्थ बेकार और निश्चिन्तता के बिना भोग बेकार है । आपके सामने बढ़िया से बढ़िया भोजन सामग्री रख दिया जाये और चिन्ता का एक बीज डाल दिया जाय तो खाने का आनन्द नहीं । कमाने के लिये उसने पाँच सौ कमा लिये लेकिन किसी ने कहा कि कल से मेरी दुकान पर नहीं आना , क्योंकि दलाल ठहरा । यशोवर्मा भोगगुप्त के यहाँ से चलते - चलते त्याग शर्मा के पास पहुँचा । दो - चार दिन लग गये । रास्ता जो लम्बा था । त्याग शर्मा का कमरा बड़ा सुन्दर गोबर से लीपा - पोता हुआ शुद्ध था । ऊपर बड़ा सुन्दर पुआल पड़ा हुआ था जो सर्दी में गरम और गर्मी में ठण्डा रहे । घास - फुस का घर ऐसा ही होता है । चोरी का भी डर नहीं । वह प्राप्तः उठकर वेद - स्वाध्याय , वेद मन्त्रों का उद्घोष करे , फिर यज्ञ करे । वहाँ पहुँचकर यशोवर्मा को बड़ी प्रसन्नता हुई कि इसको निश्चिन्तता है , अर्थ भी नहीं है और भोग भी नहीं है । इसके पास धर्म है , त्याग है । इसको किसी प्रकार की चिन्ता नहीं है । तब तक राजा का एक आदमी ने आकर कहा कि " राजा साहब आपको याद कर रहे हैं । " त्याग शर्मा ने कहा " मैंने एक महीने का नियम ले रखा है , इसमें मुझे कहीं नहीं जाना है और अमुक हवन पूर्ण करना है । " मन्त्री ने कहा " राजा ने कहा है कि सोने के थाल में मोती भर कर दूँगा । " उसने कहा " राजा से कह देना कि एक नहीं , एक सौ आठ थाल भी भर कर दें तो भी मैं अपना नियम नहीं छोड़ने वाला हूँ । " यशोवर्मा को लगा कि यह बड़ा त्यागी है । इसके मन में कोई चिन्ता नहीं है । पाँच - सात दिन उसके साथ रहा तो यशोवर्मा का चित्त बड़ा प्रसन्न रहा । कभी संगीत का , कभी काव्य का तो कभी पुराण ग्रन्थों का आनन्द ले रहा है , जो लोग आते उनके साथ तत्त्व विवेक चल रहा है । पाँच - चार दिन के बाद एक दिन ओले पड़ गये , ठण्ड हो गई और त्याग शर्मा को बुखार आ गया । बुखार में शरीर काँपे , फिर भी सवेरे उठा । यशोवर्मा ने कहा " लेटे रहो , तुम्हारा शरीर काँप रहा है , तबियत खराब है । " उसका शरीर काँप रहा है और मुँह से " हा - हा , राम - राम " निकल रहा है लेकिन उसको तो ठण्डे पानी से नहाना हुआ! नहा - धोकर बिना कपड़े पहने ही बैठ गया । यशोवर्मा ने कहा " बण्डी तो पहन लो। " उसने कहा " यज्ञ सिले कपड़े पहनकर नहीं होता । " उसे बुखार था ही , और कमज़ोर होता गया । यशोवर्मा ने सोचा कि यहाँ भी कठिन परिस्थिति है , घबराने लगा । सोचा इसके अन्दर भी सुख तो है , अर्थी को बिलकुल सुख नहीं , उसकी अपेक्षा भोगी को भोग - काल में सुख है लेकिन आगे - पीछे सुख नहीं । त्यागी धर्मात्मा को उससे भी ज्यादा सुख है लेकिन वह भी तो धर्म के बन्धन में है । सब देखकर यशोवर्मा ने विचार किया कि इसमें भी सुख नहीं है । वहाँ से आगे चला । उसने कहा थोड़े दिन और रहो लेकिन यशोवर्मा ने कहा कि " देख लिया जो देखना था । "
नारायण ! आगे पहुँचा तो ज्ञानगिरि जी के यहाँ पहुँचा । एक जंगल में एकान्त कुटिया के अन्दर बड़े आनन्द से बैठे हुए महात्मा तत्त्व - विचार कर रहे थे । वहाँ पहुँचा , तो उन्होंने कहा कि " आज यहाँ भिक्षा की व्यवस्था नहीं है , कहीं और जा । " उसने कहा " मैं आपसे मिलने आया हूँ । " " किसने कहा है ? " कहा " विन्ध्येश्वरी से आया हूँ । " महात्मन् ने कहा " मेरी भी वही इष्ट है , तू आया , तो बड़ा अच्छा किया । " उन्होंने उसको बिठाया और कहा कि " मैं आधे - एक घंटे में आता हूँ । " गाँव से जाकर दूध , मलाई ले आये और कहा - " खाओ । " यशोवर्मा ने कहा " आप तो कहते थे कि यहाँ भिक्षा की व्यवस्था नहीं है । " उन्होंने कहा " मैंने नियम बना रखा है कि मैं किसी के घर माँगने नहीं जाता । सन्यासी की कई वृत्तियाँ शास्त्रों में बताई हैं । एक कुत्ते की और एक अजगर की वृत्ति होती है । जैसे कुत्ते को जहाँ भोजन की सुगन्धि आई , वहाँ पहुँच गया। कुछ न कुछ देंगे , या रोटी या मुक्का ! दूसरी , अजगर वृत्ति कि कोई आ गया तो देगा , नहीं तो बैठा है । मेरी अजगर वृत्ति है । मैंने ऐसा नियम बना रखा है , फिर भी आज तू विन्ध्येश्वरी भगवती का भक्त आया है , इसलिये माँग लाया । " यशोवर्मा ने कहा " आपको शरम नहीं आई कि लोग क्या कहेंगे । " उन्होंने कहा " लोगों को जो कहना है , कहने दो , अपने को उससे क्या ! तू आनन्द से बैठकर खा । " न तो यहाँ अर्थ वालों की चिन्ता है और न भोग की और न त्यागी का बन्धन है । यहाँ तो " सहज स्थिति " है । उसने कहा " आगे से आपको रोज माँगने जाना पड़ेगा । " महात्मा ने कहा " कल से फिर नियम बना लूँगा कि नहीं जाऊँगा , इसमें क्या है ! " जब उसने देखा तो पाया कि उसमें किसी प्रकार का कोई भी परिवर्तन नहीं है । उस दिन दूध - मलाई खाई तो भी कुछ नहीं , बड़े आनन्द से हजम हो गई । यशोवर्मा जब वहाँ दो - एक दिन रहा तो उन्होंने किसी से कह दिया कि यशोवर्मा को घर ले जाकर खिला दिया करो । वहाँ दो - एक दिन कोई भोजन नहीं आया तो उसने पूछा कि " आपको भूख नहीं लगती ? " कहा " भूख किस बात की ? कभी - कभी व्रत रख देने से शरीर ठीक हो जाता है । " फिर एक दिन अच्छा माल आ गया , रबड़ी , पूरी , दम आलू बनकर आये । उसने सोचा कि इन्होंने दो दिन से कुछ नहीं खाया है , यह खाने से पेट बिगड़ जायेगा । लेकिन उस दिन भी दोनों ने डटकर खाया। उसने विचार किया कि इनको तो किसी भी परिस्थिति में कोई फर्क पड़ता ही नहीं है । बस ईश्वर के उपासना की यही कृतार्थता है ।
नारायण ! वापिस जाकर विन्धेश्वरी भगवती से यशोवर्मा ने कहा कि " मेरे को तो ज्ञान गिरि जैसा सुख दो । लेकिन माँ ! एक बात बताओ , कि आपने मुझे दर - दर क्यों भटकवाया ? " देवी ने कहा " पहले मेरी कही हुई बात होती , इसलिये तेरे दिल में नहीं उतरती । अब तू देख आया है , इसलिये तेरे दिल में उतर गई । नहीं तो तू सोचता कि टालने के लिये बाबा जी बनने को कह रही हूँ । " जिसने इस चीज को तत्त्व से अनुभवपूर्वक , अर्थ , धर्म , काम सबको समझकर देख लिया कि इसमें कुछ नहीं है , वह कृतार्थ होकर प्रतिक्षण आनन्द लेता है । उसकी कृतार्थता , उसकी ब्रह्म - उपासना यहीं सफल हो जाती है । इति शम् ।
नारायण स्मृतिः

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

बटुक भैरव का चमत्कारी १०८ नाम

बटुक भैरव का यह १०८नाम बहुत ही चमत्कारी है ।
धन की इच्छा रखने वाले, पुत्र प्राप्ति की इच्छा पत्नी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले की इच्छा तीन मास तक पूर्ण कर देते है । 
लगातार मंत्र करने वाले साधक को रोगी को रोग से मुक्ति मिलती है तथा बंधन बनाकर रखे गये मनुषय के बंधन कट जाते है हथकडी-बेडी में बंधा हुआ प्राणी भी इस नाम से मुक्ति पा जाता हैं । 
ग्रंथो में कहा गया है की १०८ नामो के करने से सभी आपत्तिया चाहे दैहिक-दैविक कोई भी क्यों न हो सभी से छुटकारा मिलता है और सभी प्रकार का आंनद प्राप्त होता है ।
*।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।।*
भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।
क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,
जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,
स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,
वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।
उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।
वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,
भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,
धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,
जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,
उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।
कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि
वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,
जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,
जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,
उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,
शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,
हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,
जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,
भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,
जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,
वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,
मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।
उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,
जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, आपद्-उद्धारक हैं ।
उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।
*।। फल-श्रुति ।।*
इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,
शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।
उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,
शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।
रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,
कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।
अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,
उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।

रविवार, 16 नवंबर 2014

लक्ष्मी शाबर मन्त्र

लक्ष्मी शाबर मन्त्र
“विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”

विधिः- धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर सवा लक्ष जप करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई देगा। रुके कार्य होंगे। लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।

दुर्गा शाबर मन्त्र

दुर्गा शाबर मन्त्र
“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह-वाहिनी। बीस-हस्ती भगवती, रत्न-मण्डित सोनन की माल। उत्तर-पथ में आप बैठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि। धन-धान्य देहि देहि, कुरु कुरु स्वाहा।”

विधिः- उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त होती है, नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।

गोरख शाबर गायत्री मन्त्र

गोरख शाबर गायत्री मन्त्र
“ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश। गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी, सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर। गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री। ॐ ब्रह्म, सोऽहं शक्ति, शून्य माता, अवगत पिता, विहंगम जात, अभय पन्थ, सूक्ष्म-वेद, असंख्य शाखा, अनन्त प्रवर, निरञ्जन गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति जोग, जल-स्वरुप रुद्र-वर्ण। सर्व-देव ध्यायते। आए श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथ। ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षः प्रचोदयात्। ॐ इतना गोरख-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया। गंगा गोदावरी त्र्यम्बक-क्षेत्र कोलाञ्चल अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ। नव-नाथ, चौरासी सिद्ध, अनन्त-कोटि-सिद्ध-मध्ये श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथजी कथ पढ़, जप के सुनाया। सिद्धो गुरुवरो, आदेश-आदेश।।”

साधन-विधि एवं प्रयोगः-
प्रतिदिन गोरखनाथ जी की प्रतिमा का पंचोपचार से पूजनकर २१, २७, ५१ या १०८ जप करें। नित्य जप से भगवान् गोरखनाथ की कृपा मिलती है, जिससे साधक और उसका परिवार सदा सुखी रहता है। बाधाएँ स्वतः दूर हो जाती है। सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है और अन्त में परम पद प्राप्त होता है।

हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र

हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र
“ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र ‌प्रताप-रक्षा-कारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गटका चक कील, बावन भैरो कील, मरी कील, मसान कील, प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, तिजारी कील, छल कील, छिद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के दोनों दरवाजा कील, बावन वीर कील, चौंसठ जोगिनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग कील, पाताल कील, पृथ्वी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।”

विधिः- अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने से सिद्ध होता है। अधिक कष्ट हो, तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फूल और गुग्गूल की आहुति दें। लाल लँगोट, फल, मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।

नवनाथ-शाबर-मन्त्र

नवनाथ-शाबर-मन्त्र


ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”

विधिः- पूर्णमासी से जप प्रारम्भ करे। जप के पूर्व चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर उन पर ९ सुपारियाँ मौली बाँधकर नवनाथों के प्रतीक-रुप में रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुरु, गणेश और इष्ट का स्मरण कर आह्वान करे। फिर मन्त्र-जप करे। प्रतिदिन नियत समय और निश्चित संख्या में जप करे। ब्रह्मचर्य से रहे, अन्य के हाथों का भोजन या अन्य खाद्य-वस्तुएँ ग्रहण न करे। स्वपाकी रहे। इस साधना से नवनाथों की कृपा से साधक धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उनकी कृपा से ऐहिक और पारलौकिक-सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
विशेषः-’शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।

पीलिया का मंत्र

पीलिया का मंत्र

ओम नमो बैताल। पीलिया को मिटावे, काटे झारे। रहै न नेंक। रहै कहूं तो डारुं छेद-छेद काटे। आन गुरु गोरख-नाथ। हन हन, हन हन, पच पच, फट् स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र को ‘सूर्य-ग्रहण’ के समय १०८ बार जप कर सिद्ध करें। फिर शुक्र या शनिवार को काँसे की कटोरी में एक छटाँक तिल का तेल भरकर, उस कटोरी को रोगी के सिर पर रखें और कुएँ की ‘दूब’ से तेल को मन्त्र पढ़ते हुए तब तक चलाते रहें, जब तक तेल पीला न पड़ जाए। ऐसा २ या ३ बार करने से पीलिया रोग सदा के लिए चला जाता है।

दाद का मन्त्र

दाद का मन्त्र

ओम् गुरुभ्यो नमः। देव-देव। पूरा दिशा भेरुनाथ-दल। क्षमा भरो, विशाहरो वैर, बिन आज्ञा। राजा बासुकी की आन, हाथ वेग चलाव।”
विधिः- किसी पर्वकाल में एक हजार बार जप कर सिद्ध कर लें। फिर २१ बार पानी को अभिमन्त्रित कर रोगी को पिलावें, तो दाद रोग जाता है।

श्री भैरव मन्त्र



ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया। जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठा होय, तो उठाय ल्यावो। अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, घर बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाड़ मोह, महिला बैठी रानी मोह। डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बरियों से बरी कर दे। नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूँ आने में कहाँ लगाई बार ? खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय, जोगी मेटे ध्यान से जाय। शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें। एक पत्थर का तीन कोनेवाला टुकड़ा लिकर उसे अपने सामने स्थापित करें। उसके ऊपर तेल और सिन्दूर का लेप करें। पान और नारियल भेंट में चढावें। वहाँ नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें। अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो। मन्त्र को नित्य २१ बार ४१ दिन तक जपें। जप के बाद नित्य छार, छरीला, कपूर, केशर और लौंग की आहुति दें। भोग में बाकला, बाटी बाकला रखें (विकल्प में उड़द के पकोड़े, बेसन के लड्डू और गुड़-मिले दूध की बलि दें। मन्त्र में वर्णित सब कार्यों में यह मन्त्र काम करता है।

तेल अथवा इत्र से मोहन

तेल अथवा इत्र से मोहन
क॰ “ॐ मोहना रानी-मोहना रानी चली सैर को, सिर पर धर तेल की दोहनी। जल मोहूँ थल मोहूँ, मोहूँ सब संसार। मोहना रानी पलँग चढ़ बैठी, मोह रहा दरबार। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। दुहाई गौरा-पार्वती की, दुहाई बजरंग बली की।
ख॰ “ॐ नमो मोहना रानी पलँग चढ़ बैठी, मोह रहा दरबार। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। दुहाई लोना चमारी की, दुहाई गौरा-पार्वती की। दुहाई बजरंग बली की।”
विधिः- ‘दीपावली’ की रात में स्नानादिक कर पहले से स्वच्छ कमरे में ‘दीपक’ जलाए। सुगन्धबाला तेल या इत्र तैयार रखे। लोबान की धूनी दे। दीपक के पास पुष्प, मिठाई, इत्र इत्यादि रखकर दोनों में से किसी भी एक मन्त्र का २२ माला ‘जप’ करे। फिर लोबान की ७ आहुतियाँ मन्त्रोचार-सहित दे। इस प्रकार मन्त्र सिद्ध होगा तथा तेल या इत्र प्रभावशाली बन जाएगा। बाद में जब आवश्यकता हो, तब तेल या इत्र को ७ बार उक्त मन्त्र से अभीमन्त्रित कर स्वयं लगाए। ऐसा कर साधक जहाँ भी जाता है, वहाँ लोग उससे मोहित होते हैं। साधक को सूझ-बूझ से व्यवहार करना चाहिए। मन चाहे कार्य अवश्य पूरे होंगे।

मोहन

मोहन

 दृष्टि द्वारा मोहन करने का मन्त्र


ॐ नमो भगवति, पुर-पुर वेशनि, सर्व-जगत-भयंकरि ह्रीं ह्रैं, ॐ रां रां रां क्लीं वालौ सः चव काम-बाण, सर्व-श्री समस्त नर-नारीणां मम वश्यं आनय आनय स्वाहा।”

विधिः- किसी भी सिद्ध योग में उक्त मन्त्र का १०००० जप करे। बाद में साधक अपने मुहँ पर हाथ फेरते हुए उक्त मन्त्र को १५ 

बार जपे। इससे साधक को सभी लोग मान-सम्मान से देखेंगे।

रविवार, 9 नवंबर 2014

पीलिया झारने का मंत्र

पीलिया को ही शहरों में जॉन्डिस और हेपटाइटिस के नाम से जाना जाता है । इसकी एलोपैथी में चिकित्सा नहीं हो पाती है और अगर कोई करता भी है तो लाखो रुपये खर्च करने पर भी पूर्ण आराम नहीं हो पाता है । 

मैं जो निम्न मंत्र बता रहा हु सर्व प्रथम इसकी सिद्धि करे । ततपश्चात पीलिया के रोगी को सामने बैठा कर कांसे की कटोरी में तेल डाल कर रोगी के सर पर रखे और कुशा से हिलाते हुए इक्कीस बार मंत्र बोले । ऐसा 

करने पर यदि कटोरे का तेल पीला हो जाये तो समझें चाहिए की मंत्र सिद्ध हो गया है और रोगी रोग मुक्त हो रहा है । इसी विधि को तीन दिन करने से रोगी पूर्णतः रोग मुक्त हो जाता है । 

मंत्र :- ओम नमो विखेताल असराल नारसिंह देव तुषादि पीलिया कूँ भिदाती कौरे झौरे पीलिया रहे न नेक निशान जो कहीं रह जाय तो हनुमंत की आन मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा । 

विधि :- होली, रामनवमी या दिवाली की रात्रि से यह मंत्र आरम्भ कर देना चाहिए और नित्य एक हजार मंत्रो का जाप करके इक्कीस दिन में इक्कीस हजार जप करके मंत्र को सिद्ध कर लेना चाहिए । 

ओलो का स्तम्भन (शाबर मंत्र प्रयोग)

कई बार यह देखा जाता है की ओलो और तूफान से कृषि को अत्यधिक हानि पहुचती है अनेक बार तो ओला वृष्टि से खेतो की फैसले तो नष्ट होती ही है जान की भी  हानि पहुचती है  अतः इसी को ध्यान में रखकर निम्न प्रयोग दिया जा रहा है । इस मंत्र के प्रयोग से ओलो को बराया (भगाया)  जाता है  

मंत्र :- समुद्र समुद्र में द्धीप द्धीप में कूप कूप में कुई जहाँ ते चले हरि हर परे ओले चारो तरफ बरावत चला हनुमंत बरावत चला भीम ईश्वर भांजि मठ में जाय गौरा बैठी द्वारे नहाईं ठक्कनै उद्परै न बोला राजा इंद्र की दुहाई मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा । 

मंत्र सिद्ध करने की विधि :- आषाढ़ की पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) से श्रावण की पूर्णिमा तक एक माह तक गांव के बाहर बने हनुमान मंदिर पर पूजन आदि संपन्न कर नित्य एक माला जपने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है । मंत्र जप के समय गुग्गल की धुप देते रहे । 

प्रयोग विधि :- सिद्धि के पश्चात  स्वतः उगी सरसों एकत्र करके नवरात्रों में उस पर नित्य एक माला का जप करे । इस प्रकार सिद्ध की गई सरसो को ओले बरसते समय गाँव के बाहर जाकर  मंत्र पढ़ते हुए कुछ कुछ दाने  चारो दिशाओ में कुछ कुछ दाने ऐसी दिशा में फेंके जहां खेत न हो । बरसते हुए उसी दिशा में गिराने लगेंगे और फसल सुरक्षित हो जाएगी । 

तांत्रिक प्रयोग निवारण प्रयोग

यदि किसी भी प्रकार के तांत्रिक प्रयोग किये जाने के कारन कोई ब्यक्ति बार बार बीमार पर जाता हो और लगातार परेशान रहता हो तो उसके निवारण हेतु प्रयोग  प्रस्तुत कर रहा हु जिसका प्रयोग कोई भी श्रधा के साथ कर सकता है :-
सामग्री :- 01 कैथा का फल ।
आसन- कोई भी
वस्त्र - कोई भी
समय - दोपहर या अर्द्ध रात्रि में
मन्त्र- न्री  नरसिंघा ये प्रचंड रुपाये सर्व बाधा नाशय नाशय !!
विधि :- कैथा के फल को सामने रखकर उपरोक्त मन्त्र का एक माला जप कर कैथा के फल पर एक बार फुक मारे । इस प्रकार कुल 08 माला उपरोक्त मन्त्र का जप कर 08 बार कैथा के फल पर फुक मरने के बाद उस फल से उसी समय पीड़ित व्यक्ति का 7 बार उतारा  करे और उस कैथा के फल को किसी चौराहे पर जाकर पटककर फोर दे तथा वापस घर चले आये । रास्ते में पीछे मुरकर नहीं देखे ।
यदि कैथा का फल उपलब्ध नहीं हो तो बेल का फल उपयोग में लाया जा सकता है

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

दृष्टिदोष (नजर लगना ) निवारण मंत्र

दृष्टिदोष (नजर लगना ) बच्चो को ही नहीं बड़ो को भी लगती है  अतः इसके निवारण के लिए निम्न लिखित 

मंत्र को सूर्य-चन्द्र ग्रहण, दिवाली या होली की रात्रि को पंचोपचार से माँ काली का पूजन कर एक माला जपने 

से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है 

प्रयोग :- सिद्ध मंत्र से दृष्टिदोष से बाधित बालक/बालिका को मोरपंख या बुहारी अथवा चाकू से सात बार झाड़ 

दे । ऐसा करने से दृष्टिदोष (नजर लगना ) समाप्त हो जाती है । 


मंत्र :- काली काली महाकाली इंद्र की बेटी ब्रह्मा की साली तेरा वचन न जाये खाली कचिया मशान बांध 

पकिया मशान बांध घाट व घटोइ बांध पीपरी को जिन्द बांध डाकिनी शाकिनी महामारी पूतना उच्चाटन डाल 

जहाँ की तहाँ न पहुँचावे तो काली कलकत्ते वाली न कहावे । मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईशवरो वाचा । 

लव-जिहाद हटाने का झाड़ा = मन्त्र


--- ओम नमो आदेश गुरु का --- आदि खोपड़ी खान दे . जात का मसान , सुवर को खाने वाला मंसाराम 

अघोरी इस कन्या के सर से पीरों का साया हटाय नहीं हटायें तो शंकर जी की आन \\\

==== जिस कन्या या महिला पर पीरों का पलितो का पचंद्रों का साया हो उस कन्या को सामने बैठा कर = 

कंडे या कोयले के जलते आंगरों पर सुवर के मल का बारीक़ चूर्ण और बच का चूर्ण की धुनि देते हुवे इस मन्त्र 

से झाड़ा दे आस्चर्यजनक रूप से वह कन्या महिला बुरे लोगो की संगति से और इन आत्मावों से मुक्त होकर 

सुरक्षित जीवन जियेगी \\


शनिवार, 1 नवंबर 2014

धरण ठिकाने आने का एवं बाँह में तेज दर्द को हरने का मंत्र

बहुत से लोग जो नाभि डिगने (खिसकने) या धारण टलने  की समस्या सा परेशान रहते है वह निम्न लिखित मंत्र का प्रयोग करे । इस मंत्र से धरण  ठिकाने आ जाती है और अगर बाँह में तेज दर्द हो तो  उसमे भी लाभ होता है 

मंत्र :- सुमेरु पर्वत सुमेरु पर्वत पर लोना चमारी लोना चमारी की सोने की राँपी सोने की सुतारी हूक चक बाँह बिलारी धरणी नाली काटि कूटि समुद्र खारी बहाओ लोना चमारी की दुहाई फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा । 

विधि :- किसी शुभ मुहूर्त में 108 बार जपने से मंत्र सिद्ध हो जाता है । सिद्ध होने के बाद मंत्र से अभिमंत्रित विभूति नाभि पर लगाने से धारण ठिकाने आ जाती है । इसी प्रकार अभिमंत्रित विभूति को बाँह पर लगाने से बाँह की तीव्र पीड़ा भी समाप्त हो जाती है ।