शनिवार, 16 सितंबर 2017

भगवती पीताम्बरा के अष्टाक्षर मंत्र का अनुष्ठान

।। भगवती पीताम्बरा के अष्टाक्षर मंत्र का महात्म्य ।। 

भगवती बगलामुखी (पीताम्बरा ) के इस मंत्र का अनुष्ठान चतुराक्षर मंत्र के अनुष्ठान के बाद किया जाता हैा भगवती का यह मंत्र बहुत ही प्रभावशाली एवं चमत्कारी हैा  साधको के हितार्थ भगवती के अष्ठाक्षर मंत्र का विधान दे रहा हूं 



मंत्र :- ओम आँ ह्ल्रीं क्रों हुं फट स्वाहा 


ध्यान 

युवती च मदोन्मत्तां पीताम्बर धरां शिवाम | 
पीतभूषण भूषांगी समापीन पयोधराम || 
मदिरामोद - वदनां प्रवाल सदृशाधराम | 
 पानं पात्रं च शुद्धिं च विभ्रतीं बगलां स्मरेत || 

विनियोगः 

ॐ अस्य अष्टाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः बगलामुखी देवता लं बीजं 
ह्रीं शक्तिः ईं कीलकं मम सर्वार्थ सिध्यर्थे जपे विनियोगः || 

ऋष्यादि न्यासः 

श्री ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि | 
गायत्री छन्दसे नमः मुखे | 
श्री बगलामुखी देवताये नमः हृदि | 
लं बीजाय नमः गुह्ये | 
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | 
ईं कीलकाय नमः सर्वांगे | 
श्री बगलामुखी देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ || 

❄षडङ्ग-न्यास  कर-न्यास | अंग-न्यास ||  

ॐ हल्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः| हृदयाय नमः ||
ॐ हल्रीं तर्जनीभ्यां नमः| शिरसे स्वाहा ||
ॐ हल्रूं मध्यमाभ्यां नमः|  शिखायै वषट् ||
ॐ हल्रैं अनामिकाभ्यां नमः| कवचाय हुं ||
ॐ हल्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः| नेत्र-त्रयाय वौषट् ||
ॐ हल्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः| अस्त्राय फट् || 


मंत्र का हल्दी की माला से 125000 जप करे और तद दशांश हवन , तद्दशांश तर्पण तद्दशांश मार्जन/ अभिषेक करके कम से कम  11 ब्राह्मणो को भोजन करावें | 







  

भगवती स्तोत्रम्


दिनांक २१ सितबंर २०१७ से नवरात्री का शुभागमन हो रहा है माता रानी हमारे घर पधारे और हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें यही हम सब की कामना होती है।
 हम सब तरह -तरह से माँ की प्रार्थना अर्चना करते हैं  इस स्त्रोत का उच्च स्वर से पाठ करना बहुत ही फलदायी होता है,

भगवती स्तोत्रम्
जय भगवती देवी नमो वरदे
जय पापविनाशिनी बहु फलदे ॥
जय शुम्भ निशुम्भ कपाल धरे
प्रणमामि तु देवि नरार्ति-हरे ॥१॥
जय चन्द्र्दिवाकर नेत्र धरे
जय पावक-भूषित-वक्त्र-वरे ॥
जय भैरव-देह-निलीन-परे
जय अन्धक-दैत्य-विशोष-करे ॥२॥
जय महिष-विमर्दिनि शूल-करे
जय लोक-समस्तक-पाप-हरे।
जय देवि पितामह-विष्णुनते 
जय भास्कर-शक्र-शिरोवनते ॥३॥
जय षण्मुख-सायुध-ईशनुते
जय सागर-गामिनि शम्भु-नुते।
जय दु:ख-दरिद्र-विनाश-करे
जय पुत्र-कलत्र-विवृद्धि-करे ॥४॥
जय देवि समस्त-शरीर-धरे
जय नाक-विदर्शिनि दु:ख-हरे।
जय व्याधि-विनाशिनि मोक्ष करे
जय वांछित-दायिनि सिद्धि-करे ॥५॥