मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

जानिए क्या होता है खरमास, मलमास,कब होता है आरम्भ

जानिए क्या होता है मलमास,कब होता है आरम्भ
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सूर्य के बृहस्पति की धनुराशि में गोचर करने से खरमास, मलमास शुरू होता है । यह स्थिति मकरसंक्रान्ति तक रहती है। इस कारण मांगलिक कार्य नहीं होते है। जैसे ही सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है तभी से मलमास आरम्भ हो जाता है और इसी के साथ शादी विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्य निषेध हो जाते है।
मलमास में सूर्य धनु राशि का होता है। ऐसे में सूर्य का बल वर को प्राप्त नहीं होता। इस वर्ष १६ दिसंबर २०१८ से १४ जनवरी २०१८ तक मलमास रहेगा। वर को सूर्य का बल और वधू को बृहस्पति का बल होने के साथ ही दोनों को चंद्रमा का बल होने से ही विवाह के योग बनते हैं। इस पर ही विवाह की तिथि निर्धारित होती है।
मलमास शुरू हो जाने से विवाह संस्कारों पर एक माह के लिए रोक लग जाएगी। साथ ही अनेक शुभ संस्कार जैसे जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश भी नहीं किया जाएगा। हमारे भारतीय पंचांग के अनुसार सभी शुभ कार्य रोक दिए जाएंगे। मलमास को कई लोग अधिक मास भी कहते हैं। अधिक मास कई नामों से विख्यात है। इस महीने को अधिमास, मलमास, और पुरुषोत्तममास के नाम से पुकारा जाता है। शास्त्रों में मलमास शब्द की यह व्युत्पत्ति निम्न प्रकार से बताई गई हैः
‘मली सन् म्लोचति गच्छतीति मलिम्लुचः’
अर्थात् ‘मलिन (गंदा) होने पर यह आगे बढ़ जाता है।’
हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस पूरे महीने मल मास में किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही है।जब गुरु की राशि में सूर्य आते हैं तब मलमास का योग बनता है। वर्ष में दो मलमास पहला धनुर्मास और दूसरा मीन मास आता है। सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य निषेध माने जाते हैं। विवाह और शुभ कार्यों से जुड़ा यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है जबकि दक्षिण भारत में इस नियम का प्रभाव शून्य रहता है। मद्रास, चेन्नई, बेंगलुरू में इस दोष से विवाह आदि कार्य मुक्त होते हैं।
गीता सार !!
मलमास में व्रत का महत्व
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जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें पूरे माह भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए. श्रीपुरुषोत्तम महात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है.
मल मास के आरम्भ के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा – पाठ का अत्यधिक महात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है.
मल मास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए.
इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है।

गायत्री गुप्त मन्त्र और सम्पुट

गायत्री गुप्त मन्त्र और सम्पुट

गायत्री मन्त्र के साथ कौन सा सम्पुट लगाने पर क्या फल मिलता है!!

ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ
श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ऐं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं भर्गो देवस्य
धीमहि ॐ सौ: धियो यो न: प्रचोदयात
ॐ नम:! ॐ श्रीं ह्रीं ॐ भूर्भुव:
स्व: ॐ ऐं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ सौ: ॐ धियो यो न: प्रचोदयात ॐ ह्रीं श्रीं ॐ !!

गायत्री जपने का अधिकार जिसे नहीं है वे निचे लिखे मन्त्र का जप करें!

ह्रीं यो देव: सविताSस्माकं मन: प्राणेन्द्रियक्रिया:!
प्रचोदयति तदभर्गं वरेण्यं समुपास्महे !!

सम्पुट प्रयोग

गायत्री मन्त्र के आसपास कुछ बीज मन्त्रों का सम्पुट लगाने का भी विधान है जिनसे विशिष्ट कार्यों की सिद्धि होती है ! बीज मन्त्र इस प्रकार हैं----

१- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं --- का सम्पुट लगाने से
लक्ष्मी की प्राप्ति होती है!

२- ॐ ऐं क्लीं सौ:-- का सम्पुट लगाने से
विद्या प्राप्ति होती है!

३-- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं --
का सम्पुट लगाने से संतान प्राप्ति, वशीकरण और मोहन होता है!

४-- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं -- का सम्पुट के
प्रयोग से शत्रु उपद्रव, समस्त विघ्न बाधाएं और संकट दूर होकर भाग्योदय होता है!

५-- ॐ ह्रीं --- इस सम्पुट के प्रयोग से रोग नाश होकर सब प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है!

६-- ॐ आँ ह्रीं क्लीं -- इस सम्पुट के प्रयोग से पास के द्रव्य की रक्षा होकर
उसकी वृद्धि होती है तथा इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है! इसी प्रकार किसी भी मन्त्र की सिद्धि और विशिष्ट कार्य की शीघ्र सिद्धि के लिए भी दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों के साथ सम्पुट देने का भी विधान है! गायत्री मन्त्र समस्त मन्त्रों का मूल है तथा यह आध्यात्मिक शान्ति देने वाले हैं!!

गायत्री शताक्षरी मन्त्र

" ॐ भूर्भुव: स्व : तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि! धियो यो न: प्रचोदयात! ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममराती यतो निदहाति वेद:! स न: पर्षदतिदुर्गाणि विश्वानावेव सिंधु दुरितात्यग्नि:!
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम! उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात !!"

शास्त्र में कहा गया है कि गायत्री मन्त्र जपने से पहले गायत्री शताक्षरी मन्त्र
की एक माला अवश्य कर लेनी चाहीये! माला करने पर मन्त्र में चेतना आ जाती है!!

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

परविद्या छेदन मंत्र

परविद्या छेदन मंत्र
आज कल के समय मे लोग परविद्या अर्थात किये कराये से ज्यादा परेशान हैं एक पुरानी घटना इसका निवारण हमें दे सकती है जब सुग्रीव जी और बाली मे युद्ध चलता था तब सुग्रीव पर्वत पर रहते थे और सिद्धि करते थे उस समय श्री सुग्रीव जी को अनेक सिद्धियाँ भी प्राप्त हुईं और जब श्री राम ने लंका पर चढ़ाई की तब भी सुग्रीव जी ने इन सिद्धियों के बल पर अपनी सेना की काफी सहायता की रावण के सैनिक राक्षस थे और परविद्या मे निपुण थे ऐसे मे श्री सुग्रीव जी और हनुमान जी अपनी शक्तियों से अपनी सेना की रक्षा करते थे ऐसा ही एक मंत्र आज भी बहुत प्रचलित और उपयोग है जिसका नाम है परविद्या नाशक सुग्रीव मंत्र
अगर आप किसी भी ऐसी समस्या मे घिरे हैं जैसे धन की समस्या, काम का ना चलना, व्यापार मे हानि कोर्ट केस इत्यादि जिससे निकलने के स्थान पर उसमे और फंसते जा रहे हों तो आप समझ लीजिए कि पर विद्या है ऐसे मे
एक मुट्ठी चावल लेकर
ll ॐ सुग्रीवाय जने वह ताराय स्वाहा डाकिनी दिशा बंध पुत्र रक्षा च प्रवश्य प्रवश्य ll
मंत्र को १०८ बार पढ़कर अक्षत अपने ईष्ट और कुलदेवी का ध्यान करते हुए दक्षिण दिशा की और उछाल दें
यह परविद्या की समाप्ति का बड़ा ही बेहतर और शक्तिशाली उपाय है

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

दरिद्रता को समूल नष्ट करने के लिये......श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव-साधना

जय जय माँ !
दरिद्रता को समूल नष्ट करने के लिये
श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव-साधना
श्रीभैरव के अनेक रूप व साधनाओं का वर्णन तन्त्रों में वर्णित है। उनमें से एक श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव साधना है जो साधक को दरिद्रता से मुक्ति दिलाती है। जैसा इनका नाम है वैसा ही इनके मन्त्र का प्रभाव है। अपने भक्तों की दरिद्रता को नष्ट कर उन्हें धन-धान्य सम्पन्न बनाने के कारण ही आपका नाम ' स्वर्णाकर्षण -भैरव ' के रूप में प्रसिद्ध है।

इनकी साधना विशेष रूप से रात्रि काल में कि जाती हैं। शान्ति-पुष्टि आदि सभी कर्मों में इनकी साधना अत्यन्त सफल सिद्ध होती है। इनके मन्त्र, स्तोत्र, कवच, सहस्रनाम व यन्त्र आदि का व्यापक वर्णन तन्त्रों में मिलता है। यहाँ पर सिर्फ मन्त्र-विधान दिया जा रहा है। ताकि जन -सामान्य लाभान्वित हो सके।
प्रारंभिक पूजा विधान पूर्ण करने के बाद --
#विनियोग-
ऊँ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव मन्त्रस्य श्रीब्रह्मा ॠषिः, पंक्तिश्छन्दः, हरि-हर ब्रह्मात्मक श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरवो देवता, ह्रीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ऊँ कीलकं, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव प्रसन्नता प्राप्तये, स्वर्ण-राशि प्राप्तये श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव मन्त्र जपे विनियोगः।
#ॠष्यादिन्यास
ऊँ ब्रह्मा-ॠषये नमः-----शिरसि।
ऊँ पंक्तिश्छन्दसे नमः----मुखे।
ऊँ हरि-हर ब्रह्मात्मक स्वर्णाकर्षण-
भैरव देवतायै नमः ---ह्रदये।
ऊँ ह्रीं बीजाय नमः-------गुह्ये।
ऊँ ह्रीं शक्तये नमः--------पादयोः।
ऊँ ऊँ बीजाय नमः-------नाभौ।
ऊँ विनियोगाय नमः------सर्वाङ्गे।
#करन्यास-
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय----अंगुष्टाभ्यां नमः। ::
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामल-बद्धाय --------तर्जनीभ्यां नमः।
ऊँ लोकेश्वराय----------------------मध्यमाभ्यां नमः।
ऊँ स्वर्णाकर्षण-भैरवाय नमः--------अनामिकाभ्यां नमः।
ऊँ मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय-----------कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऊँ महा-भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं--------करतल-कर पृष्ठाभ्यां नमः।
#ह्रदयादिन्यासः-
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय----ह्रदयाय नमः।
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामल-बद्धाय---------शिरसे स्वाहा।
ऊँ लोकेश्वराय-----------------------शिखायै वषट्।
ऊँ स्वर्णाकर्षण-भैरवाय -------------कवचाय हुम्।
ऊँ मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय----------नेत्र-त्रयाय वौषट्।
ऊँ महा-भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं -------अस्त्राय फट्।
#ध्यान-
पारिजात-द्रु-कान्तारे ,स्थिते माणिक्य-मण्डपे।
सिंहासन-गतं ध्यायेद्, भैरवं स्वर्ण - दायिनं।।
गाङ्गेय-पात्रं डमरुं त्रिशूलं ,वरं करैः सन्दधतं त्रिनेत्रम्।
देव्या युतं तप्त-सुवर्ण-वर्णं, स्वर्णाकृतिं भैरवमाश्रयामि।।
ध्यान करने के बाद पञ्चोपचार पूजन करले ।
#मन्त्र-
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणा ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय महा-भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं।
जप संख्या व हवन - एक लाख जप करने से उपरोक्त मन्त्र का पुरश्चरण होता है और खीर से दशांश हवन करने तथा दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन व मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन करने से यह अनुष्ठान पूर्ण होता है।
पुरश्चरण के बाद तीन या पाँच माला प्रतिदिन करने से एक वर्ष में दरिद्रता का निवारण हो जाता है। साथ ही उचित कर्म भी आवश्यक है।

साधना करने से पूर्व किसी योग्य विद्वान से परामर्श जरूर प्राप्त करले।

आज दिपावली पर पाठ जप करके आप जीवन मे परिवर्तन ला सकते हैं ।

सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
मुझे प्रतिदिन लोग पूछते हैं उनके व्यवसाय नोकरी कारोबार में उन्हें काफी अड़चनों का सामना करना पड़ता हैं किसी को रोजगार नही मिल रहा तो में उनकी इस प्रकार की समस्या को लेकर एक  रिसर्च किया और आप तक कुछ  मंत्रो को ला रहा हूँ जिसका आज दिपावली पर पाठ जप करके आप जीवन मे परिवर्तन ला सकते हैं ।
जो बताया जा रहा पूर्ण श्रद्धा से करे। ॐ जगन्माते नमः श्री कमलायै नमः
मंत्र :
1. ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।
2. श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये।
3. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा ।
4. ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः।
5. ॐ श्रीं श्रियै नमः।
6. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।
7. धन लाभ एवं समृद्धि मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।
8. अक्षय धन प्राप्ति मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ ।
इस मंत्र की शक्ति से ही कुबेर धनाधिपति बने ।
यह 8 मंत्र है आपकी समस्या के अनुसार
मेष,वृश्चिक राशि के लोग मंत्र 3 की 5 माला करे ।
वृषभ, तुला राशि के लोग मंत्र 4 की 5 माला करे।
मिथुन,कन्या के लोग मंत्र 5 की 9 माला जपे।
कर्क, सिंह राशि के लोग मंत्र 6 की 7 माला करे ।
धनु,मीन राशि के लोग मंत्र 7 की 9 माला करे।
मकर,कुम्भ राशि के लोग मंत्र 8 की 11 माला करे
1,2 मंत्र में से कोई भी सभी को 1 माला जरूरी हैं ।

रविवार, 28 अक्तूबर 2018

दुर्लभ बगला मन्त्र

दुर्लभ बगला मन्त्र
ॐ पीत पीतेश्वरी पीताम्बरा बगला परमेश्वरी ऐं जिव्हा स्तम्भनी ह्लीं शत्रु मर्दनी महाविद्या श्री कनकेश्वरी सनातनी क्रीं घोरा महामाया काल विनाशनी पर विद्या भक्षणि क्लीं महा मोह दायनी जगत वशिकरणी ऐ ऐं ह्लूं ह्लीं श्रां श्रीं क्रां क्रीं कलां क्लीं पीतेश्वरी भटनेर काली स्वाहा | 

इस मंत्र का एक सहस्र जप काली चौदस यानि दीपावली के एक दिन पहले करने से माँ की कृपा होती है 




रविवार, 14 अक्तूबर 2018

श्री दुर्गा सप्तशति बीज मंत्र साधना

प्रथमचरित्र
ॐ अस्य श्री प्रथमचरित्रस्य ब्रह्मा रूषिः महाकाली देवता गायत्री छन्दः नन्दा शक्तिः रक्तदन्तिका बीजम् अग्निस्तत्त्वम् रूग्वेद स्वरूपम् श्रीमहाकाली प्रीत्यर्थे प्रथमचरित्र जपे विनियोगः|
(१) श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं प्रीं ह्रां ह्रीं सौं प्रें म्रें ल्ह्रीं म्लीं स्त्रीं क्रां स्ल्हीं क्रीं चां भें क्रीं वैं ह्रौं युं जुं हं शं रौं यं विं वैं चें ह्रीं क्रं सं कं श्रीं त्रों स्त्रां ज्यैं रौं द्रां द्रों ह्रां द्रूं शां म्रीं श्रौं जूं ल्ह्रूं श्रूं प्रीं रं वं व्रीं ब्लूं स्त्रौं ब्लां लूं सां रौं हसौं क्रूं शौं श्रौं वं त्रूं क्रौं क्लूं क्लीं श्रीं व्लूं ठां ठ्रीं स्त्रां स्लूं क्रैं च्रां फ्रां जीं लूं स्लूं नों स्त्रीं प्रूं स्त्रूं ज्रां वौं ओं श्रौं रीं रूं क्लीं दुं ह्रीं गूं लां ह्रां गं ऐं श्रौं जूं डें श्रौं छ्रां क्लीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
मध्यमचरित्र
ॐ अस्य श्री मध्यमचरित्रस्य विष्णुर्रूषिः महालक्ष्मीर्देवता उष्णिक छन्दः शाकम्भरी शक्तिः दुर्गा बीजम् वायुस्तत्त्वम् यजुर्वेदः स्वरूपम् श्रीमहालक्ष्मी प्रीत्यर्थे मध्यमचरित्र जपे विनियोगः
(२) श्रौं श्रीं ह्सूं हौं ह्रीं अं क्लीं चां मुं डां यैं विं च्चें ईं सौं व्रां त्रौं लूं वं ह्रां क्रीं सौं यं ऐं मूं सः हं सं सों शं हं ह्रौं म्लीं यूं त्रूं स्त्रीं आं प्रें शं ह्रां स्मूं ऊं गूं व्र्यूं ह्रूं भैं ह्रां क्रूं मूं ल्ह्रीं श्रां द्रूं द्व्रूं ह्सौं क्रां स्हौं म्लूं श्रीं गैं क्रूं त्रीं क्ष्फीं क्सीं फ्रों ह्रीं शां क्ष्म्रीं रों डुं•
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(३) श्रौं क्लीं सां त्रों प्रूं ग्लौं क्रौं व्रीं स्लीं ह्रीं हौं श्रां ग्रीं क्रूं क्रीं यां द्लूं द्रूं क्षं ह्रीं क्रौं क्ष्म्ल्रीं वां श्रूं ग्लूं ल्रीं प्रें हूं ह्रौं दें नूं आं फ्रां प्रीं दं फ्रीं ह्रीं गूं श्रौं सां श्रीं जुं हं सं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(४) श्रौं सौं दीं प्रें यां रूं भं सूं श्रां औं लूं डूं जूं धूं त्रें ल्हीं श्रीं ईं ह्रां ल्ह्रूं क्लूं क्रां लूं फ्रें क्रीं म्लूं घ्रें श्रौं ह्रौं व्रीं ह्रीं त्रौं हलौं गीं यूं ल्हीं ल्हूं श्रौं ओं अं म्हौं प्रीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
उत्तमचरित्र
ॐ अस्य श्री उत्तरचरित्रस्य रुद्र रूषिः महासरस्वती देवता अनुष्टुप् छन्दः भीमा शक्तिः भ्रामरी बीजम सूर्यस्तत्त्वम सामवेदः स्वरूपम श्री महासरस्वती प्रीत्यर्थे उत्तरचरित्र जपे विनियोगः
(५) श्रौं प्रीं ओं ह्रीं ल्रीं त्रों क्रीं ह्लौं ह्रीं श्रीं हूं क्लीं रौं स्त्रीं म्लीं प्लूं ह्सौं स्त्रीं ग्लूं व्रीं सौः लूं ल्लूं द्रां क्सां क्ष्म्रीं ग्लौं स्कं त्रूं स्क्लूं क्रौं च्छ्रीं म्लूं क्लूं शां ल्हीं स्त्रूं ल्लीं लीं सं लूं हस्त्रूं श्रूं जूं हस्ल्रीं स्कीं क्लां श्रूं हं ह्लीं क्स्त्रूं द्रौं क्लूं गां सं ल्स्त्रां फ्रीं स्लां ल्लूं फ्रें ओं स्म्लीं ह्रां ऊं ल्हूं हूं नं स्त्रां वं मं म्क्लीं शां लं भैं ल्लूं हौं ईं चें क्ल्रीं ल्ह्रीं क्ष्म्ल्रीं पूं श्रौं ह्रौं भ्रूं क्स्त्रीं आं क्रूं त्रूं डूं जां ल्ह्रूं फ्रौं क्रौं किं ग्लूं छ्रंक्लीं रं क्सैं स्हुं श्रौं श्रीं ओं लूं ल्हूं ल्लूं स्क्रीं स्स्त्रौं स्भ्रूं क्ष्मक्लीं व्रीं सीं भूं लां श्रौं स्हैं ह्रीं श्रीं फ्रें रूं च्छ्रूं ल्हूं कं द्रें श्रीं सां ह्रौं ऐं स्कीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(६) श्रौं ओं त्रूं ह्रौं क्रौं श्रौं त्रीं क्लीं प्रीं ह्रीं ह्रौं श्रौं अरैं अरौं श्रीं क्रां हूं छ्रां क्ष्मक्ल्रीं ल्लुं सौः ह्लौं क्रूं सौं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(७) श्रौं कुं ल्हीं ह्रं मूं त्रौं ह्रौं ओं ह्सूं क्लूं क्रें नें लूं ह्स्लीं प्लूं शां स्लूं प्लीं प्रें अं औं म्ल्रीं श्रां सौं श्रौं प्रीं हस्व्रीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(८) श्रौं म्हल्रीं प्रूं एं क्रों ईं एं ल्रीं फ्रौं म्लूं नों हूं फ्रौं ग्लौं स्मौं सौं स्हों श्रीं ख्सें क्ष्म्लीं ल्सीं ह्रौं वीं लूं व्लीं त्स्त्रों ब्रूं श्क्लीं श्रूं ह्रीं शीं क्लीं फ्रूं क्लौं ह्रूं क्लूं तीं म्लूं हं स्लूं औं ल्हौं श्ल्रीं यां थ्लीं ल्हीं ग्लौं ह्रौं प्रां क्रीं क्लीं न्स्लुं हीं ह्लौं ह्रैं भ्रं सौं श्रीं प्सूं द्रौं स्स्त्रां ह्स्लीं स्ल्ल्रीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(९) रौं क्लीं म्लौं श्रौं ग्लीं ह्रौं ह्सौं ईं ब्रूं श्रां लूं आं श्रीं क्रौं प्रूं क्लीं भ्रूं ह्रौं क्रीं म्लीं ग्लौं ह्सूं प्लीं ह्रौं ह्स्त्रां स्हौं ल्लूं क्स्लीं श्रीं स्तूं च्रें वीं क्ष्लूं श्लूं क्रूं क्रां स्क्ष्लीं भ्रूं ह्रौं क्रां फ्रूं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(१०) श्रौं ह्रीं ब्लूं ह्रीं म्लूं ह्रं ह्रीं ग्लीं श्रौं धूं हुं द्रौं श्रीं त्रों व्रूं फ्रें ह्रां जुं सौः स्लौं प्रें हस्वां प्रीं फ्रां क्रीं श्रीं क्रां सः क्लीं व्रें इं ज्स्हल्रीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(११) श्रौं क्रूं श्रीं ल्लीं प्रें सौः स्हौं श्रूं क्लीं स्क्लीं प्रीं ग्लौं ह्स्ह्रीं स्तौं लीं म्लीं स्तूं ज्स्ह्रीं फ्रूं क्रूं ह्रौं ल्लूं क्ष्म्रीं श्रूं ईं जुं त्रैं द्रूं ह्रौं क्लीं सूं हौं श्व्रं ब्रूं स्फ्रूं ह्रीं लं ह्सौं सें ह्रीं ल्हीं विं प्लीं क्ष्म्क्लीं त्स्त्रां प्रं म्लीं स्त्रूं क्ष्मां स्तूं स्ह्रीं थ्प्रीं क्रौं श्रां म्लीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(१२) ह्रीं ओं श्रीं ईं क्लीं क्रूं श्रूं प्रां स्क्रूं दिं फ्रें हं सः चें सूं प्रीं ब्लूं आं औं ह्रीं क्रीं द्रां श्रीं स्लीं क्लीं स्लूं ह्रीं व्लीं ओं त्त्रों श्रौं ऐं प्रें द्रूं क्लूं औं सूं चें ह्रूं प्लीं क्षीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
(१३) श्रौं व्रीं ओं औं ह्रां श्रीं श्रां ओं प्लीं सौं ह्रीं क्रीं ल्लूं ह्रीं क्लीं प्लीं श्रीं ल्लीं श्रूं ह्रूं ह्रीं त्रूं ऊं सूं प्रीं श्रीं ह्लौं आं ओं ह्रीं
।। हूं श्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ऐं ।।
|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||
दुर्गा दुर्गर्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी | दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ||
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा | दुर्गमग्यानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ||
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी | दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ||
दुर्गमग्यानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी | दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ||
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी | दुर्गमाँगी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ||
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ||
|ॐ नमश्चण्डिकायै|||ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||ॐ श्री महाविद्यार्पणमस्तु ||

लोकतांत्रिक देशों की जनता

हिटलर एक बार अपने साथ संसद में एक मुर्गा लेकर आया,
और सबके सामने उसका एक -एक पंख नोचने लगा,
मुर्गा दर्द से बिलबिलाता रहा मगर,
एक-एक करके हिटलर ने सारे पंख नोच दिये,
फिर मुर्गे को ज़मीन पर फेंक दिया,
फिर जेब से कुछ दाने निकालकर मुर्गे की तरफ फेंक दिया और धीरे धीरे चलने लगा,
तो मुर्गा दाना खाता हुआ हिटलर के पीछे चलने लगा,
हिटलर बराबर दाना फेंकता गया और मुर्गा बराबर दाना खाता हुआ उसके पीछे चलता रहा।
आखिरकार वो मुर्गा हिटलर के पैरों में आ खड़ा हुआ।
हिटलर स्पीकर की तरफ देखा और एक तारीख़ी जुमला बोला,
"लोकतांत्रिक देशों की जनता इस मुर्गे की तरह होती है,
उन के नेता जनता का पहले सब कुछ लूट कर उन्हें अपाहिज कर देते हैं,
और बाद में उन्हें थोड़ी सी खुराक देकर उनका मसीहा बन जाते हैं"।
*This is our position at present...*.
2019 के लिए तैयार रहें। बहुत जल्द जनता को दाने फेके जाएंगे।

रविवार, 23 सितंबर 2018

सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्

सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्
श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी।
मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१
सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी।
नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२
धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा।
प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३
धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।
सुख-भोग-वैभव-शान्तिदा, साहित्य-सौरभ-दायिका।।४
वंश-वेलि-वृद्धिका, कुल-कुटुम्ब-पौरुष-प्रचारिका।
स्व-ज्ञाति-प्रतिष्ठा-प्रसारिका, स्व-जाति-प्रसिद्धि-प्राप्तिका।।५
भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्य-देशोदय-उद्भाषिका।
सर्व-कार्य-सिद्धि-कारिका, भूत-प्रेत-बाधा-नाशिका।
अनाथ-अधमोद्धारिका, पतित-पावन-कारिका।
मन-वाञ्छित॒फल-दायिका, सर्व-नर-नारी-मोहनेच्छा-पूर्णिका।।७
साधन-ज्ञान-संरक्षिका, मुमुक्षु-भाव-समर्थिका।
जिज्ञासु-जन-ज्योतिर्धरा, सुपात्र-मान-सम्वर्द्धिका।।८
अक्षर-ज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्म-ज्ञान-सन्तुष्टिका।
पुरुषार्थ-प्रताप-अर्पिता, पराक्रम-प्रभाव-समर्पिता।।९
स्वावलम्बन-वृत्ति-वृद्धिका, स्वाश्रय-प्रवृत्ति-पुष्टिका।
प्रति-स्पर्द्धी-शत्रु-नाशिका, सर्व-ऐक्य-मार्ग-प्रकाशिका।।१०
जाज्वल्य-जीवन-ज्योतिदा, षड्-रिपु-दल-संहारिका।
भव-सिन्धु-भय-विदारिका, संसार-नाव-सुकानिका।।११
चौर-नाम-स्थान-दर्शिका, रोग-औषधी-प्रदर्शिका।
इच्छित-वस्तु-प्राप्तिका, उर-अभिलाषा-पूर्णिका।।१२
श्री देवी मङ्गला, गुरु-देव-शाप-निर्मूलिका।
आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३
सिन्धु-सुता विष्णु-प्रिया, पूर्व-जन्म-पाप-विमोचना।
दुःख-सैन्य-विघ्न-विमोचना, नव-ग्रह-दोष-निवारणा।।१४
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवता-स्वरुपिणी श्रीमहा-माया महा-देवी महा-शक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः।
ॐ ह्रीं श्रीपर-ब्रह्म परमेश्वरी। भाग्य-विधाता भाग्योदय-कर्त्ता भाग्य-लेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं।
कुतूहल-दर्शक, पूर्व-जन्म-दर्शक, भूत-वर्तमान-भविष्य-दर्शक, पुनर्जन्म-दर्शक, त्रिकाल-ज्ञान-प्रदर्शक, दैवी-ज्योतिष-महा-विद्या-भाषिणी त्रिपुरेश्वरी। अद्भुत, अपुर्व, अलौकिक, अनुपम, अद्वितीय, सामुद्रिक-विज्ञान-रहस्य-रागिनी, श्री-सिद्धि-दायिनी। सर्वोपरि सर्व-कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्व-इच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा।
ॐ नमो नारायणी नव-दुर्गेश्वरी। कमला, कमल-शायिनी, कर्ण-स्वर-दायिनी, कर्णेश्वरी, अगम्य-अदृश्य-अगोचर-अकल्प्य-अमोघ-अधारे, सत्य-वादिनी, आकर्षण-मुखी, अवनी-आकर्षिणी, मोहन-मुखी, महि-मोहिनी, वश्य-मुखी, विश्व-वशीकरणी, राज-मुखी, जग-जादूगरणी, सर्व-नर-नारी-मोहन-वश्य-कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्न-सत्य कथय-कथय।
अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन। ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति-दायिनी। मम सर्वेप्सित-सर्व-कार्य-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया महा-शक्ति महा-लक्ष्मी महा-देव्यै विच्चे-विच्चे श्रीमहा-देवी महा-लक्ष्मी महा-माया महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।
ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः। ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः। ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः। ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः। ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः। ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः। ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः। ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः। ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः। ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः। ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः। ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः। ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः। ॐ श्री स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-भूमि-राज-कर्त्र्यै नमः।
श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीदेवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीइन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः। श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः। श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः। श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः। श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशंख-चक्र-गदा-पद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहा-माया-महा-देवी-महा-शक्ति-महा-लक्ष्मी-स्वरुपा-श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः।
ॐ विष्णु-पत्नीं, क्षमा-देवीं, माध्वीं च माधव-प्रिया। लक्ष्मी-प्रिय-सखीं देवीं, नमाम्यच्युत-वल्लभाम्। ॐ महा-लक्ष्मी च विद्महे विष्णु-पत्नि च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्। मम सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।

सोमवार, 17 सितंबर 2018

आत्म ज्ञान

आत्म ज्ञान 


---तुम्हारे पास कौन - सा प्रकाश है ?

---दिन में सूर्य का , एवं रात्रि में दीपक आदि का । 

---यदि ऐसा है तो बताओ कि सूर्य एवं दीपक को देखने के लिये तुम्हारे पास कौन - सा प्रकाश है ?

--- चक्षु ।

--- पर जब वह भी बन्द हो जाये तो ?

--- बुद्धि ।

--- और बुद्धि को देखने के लिये क्या है ?

--- वहाँ 'मैं' हूँ ।

--- अतः तुम परम प्रकाश स्वरूप हो ।

--- हे प्रभो , वही 'मैं' हूँ ।


( भगवान श्री आद्य शंकराचार्य )

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

गणपति अथर्वशीर्ष

गणेश चतुर्थी को करे आप गणपति जी का अथर्वशीर्ष का पाठ जिससे आप की कुंडली मे अनिष्ट ग्रह बुध जो कि धन सुख समृद्धि बुद्धि वाणी जनपद में मान सम्मान, व केतु ग्रह जो मानसिक जीवन की समस्या ,द्रव्यों के नाश रोग और ग्रहस्थ में दुखी इनके प्रभाव को शुभ करना गणपति जी के इस पाठ के स्मरण से ही मानव कल्याण हो जाता हैं । बुध और केतु का शुभ फल तथा जीवन मे श्री गणेश के जैसे सभी कार्य बहुत शीघ्रता से पूर्ण होना इनकी कृपा से प्राप्त होता हैं । तो आप सभी जिन्हें धन, परिवार, संतान, शिक्षा, पैसे में अड़चन , सुखों में कमी हैं तो आप गणेश जी के इस पाठ को उनके सम्मुख करे और उन्हें लड्ड़ू का भोग लगाये बप्पा जीवन को खुशियों से भर देंगे ।। गणपति बप्पा मोरिया 

गणपति अथर्वशीर्ष

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सँ हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

शनिवार, 8 सितंबर 2018

शाबर धूमावती साधना

दस महाविद्याओं में माँधूमावती का स्थान सातवां हैऔर माँ के इस स्वरुप को बहुतही उग्र माना जाता है ! माँ कायह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपाकहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मीहोते हुए भी लक्ष्मी है ! एकमान्यता के अनुसार जब दक्षप्रजापति ने यज्ञ किया तो उसयज्ञ में शिव जी को आमंत्रितनहीं किया ! माँ सती ने इसे शिवजी का अपमान समझा औरअपने शरीर को अग्नि में जलाकर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा उसने माँ धूमावती कारूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँप्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं परआधारित है ! नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँधूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे औरअनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की ! यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलितशाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है  ! कोर्ट कचहरी आदि केपचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोगकरे ! माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रुउसे मूक होकर देखते रह जाते है !

||   मंत्र  ||
 पाताल निरंजन निराकार 
आकाश मंडल धुन्धुकार 
आकाश दिशा से कौन आई 
कौन रथ कौन असवार 
थरै धरत्री थरै आकाश 
विधवा रूप लम्बे हाथ 
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव 
डमरू बाजे भद्रकाली 
क्लेश कलह कालरात्रि 
डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी 
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते 
जाया जीया आकाश तेरा होये
धुमावंतीपुरी में वास
ना होती देवी ना देव
तहाँ ना होती पूजा ना पाती
तहाँ ना होती जात न जाती
तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
आप भई अतीत
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !

||  विधि  ||
41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !

||  प्रयोग विधि १ ||
जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे – “ हे माँ ! मेरे अमुक शत्रु के घर में निवास करो ! “

ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !

||  प्रयोग विधि २ ||
शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे ! ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !

नोट - इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है  जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !