मंगलवार, 30 जनवरी 2018

ज्ञान की बात जो सत्य किन्तु कठोर है पर ग्रंथो में नहीं संतो के पास से ही मिलेगी

ज्ञान की बात जो सत्य किन्तु कठोर है पर ग्रंथो में नहीं संतो के पास से ही मिलेगी  


1.  किस्मत या भाग्य जिसको की कर्म भी कहा जाता है  प्रारब्ध भी कहते है को बनाने  वाला हमारा निज कृत कर्म  नहीं है  किस्मत या प्रारब्ध का निर्माण हमारी चाहना , तीव्र इच्छा, चाह , वासना  से ही होता है न की कर्म से |  हमारे जन्म लेने का कारन भी हमारी  विषयो के प्रति वासना,   हमारी चाहना , तीव्र इच्छा या चाह  ही है न कि कोई किया गया कर्म | उदहारण देखिये 
भगवन राम जब जनकपुर सीता स्वम्बर में गए थे और वहाँ जब वो गलियों में से जा रहे थे तो वहां की स्त्रियाँ उन्हें देख कर उनके सूंदर रूप पर मोहित होकर उन्हें पति रूप में पाने की चाह करने लगी और उनकी तीव्र चाह के कारन ही अगले जन्म में भगवन कृष्ण जी की 16108 स्त्रियाँ बनी | उनके दूसरे जन्म का कारन केवल उनकी तीव्र इच्छा ही थी  

2. दूसरा हमें जो  भी फल मिल रहा है जो कुछ भी मिल रहा है  उसका दाता कोई पूर्व का किया गया (पूर्व जन्म का ) कर्म नहीं है केवल हमारी मान्यता ही फल का दाता है | हमारी अपनी धारणा ही फल की देने वाली है  जैसे किसी ने किसी चौराहे पर गाय को खाने के लिए गुड़ रख दिया और धुप में वह गुड़ पिघल गया और चींटिया उस गुड़ को खाने के लिए गयी और उस पर चींटिया चिपक गयी |  वैसे तो जो भी वो सभी दृश्य देखेगा वो कहेगा की गुड़ रखने वाले को पाप लगेगा पर उसे पुण्य ही लगेगा | क्यों?

क्योंकि उसने गाय को खाने के लिए  गुड़ का दान किया उसके मन में दान की भावना है और उसने ये सोचा की मैंने एक अच्छा काम किया |  उसका ये सोचना " मैंने अच्छा काम किया है " ने ही उसे पुण्य का अधिकारी बना दिया |  नहीं तो उसके रखे गुड़ से चीटिंया चिपक कर मर गयी थी  देखने पर कर्म पापमय लग रहा था 

अतः उपरोक्त से ये समझे की स्थूल कर्म का कोई ज्यादा महत्त्व नहीं महत्त्व इच्छा और मान्यता का है सूक्ष्म विचारो का है