शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

श्री बगला पंजर न्यास कवच



॥ श्रीबगला त्रैलोक्य-विजय कवचम् ॥

॥ श्रीबगला त्रैलोक्य-विजय कवचम् ॥

।। श्री भैरव उवाचः ।।

श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि स्व-रहस्यं च कामदम् ।
श्रुत्वा गोप्यं गुप्ततमं कुरु गुप्तं सुरेश्वरि ।। १

कवचं बगलामुख्याः सकलेष्टप्रदं कलौ ।
तत्सर्वस्वं परं गुह्यं गुप्तं च शरजन्मना ।। २

त्रैलोक्य-विजयं नाम कवचेशं मनोरमम् ।
मन्त्र-गर्भं ब्रह्ममयं सर्व-विद्या विनायकम् ।।३

रहस्यं परमं ज्ञेयं साक्षाद्-मृतरुपकम् ।
ब्रह्मविद्यामयं वर्म सर्व-विद्या विनायकम् ।। ४

पूर्णमेकोनपञ्चाशद् वर्णैरुक्त महेश्वरि ।
त्वद्भक्त्या वच्मि देवेशि गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥५

।। श्री देव्युवाच ।।

भगवन् करुणासार विश्वनाथ सुरेश्वर ।
कर्मणा मनसा वाचा न वदामि कदाचन् ।। १

।। श्री भैरव उवाच ।।

त्रैलोक्य विजयाख्यस्य कवचास्यास्य पार्वति ।
मनुगर्भस्य गुप्तस्य ऋषिर्देवोऽस्य भैरवः ।। १

उष्णिक्-छन्दः समाख्यातं देवी श्रीबगलामुखी ।
बीजं ह्लीं ॐ शक्तिः स्यात् स्वाहा कीलकमुच्यते ।। २

विनियोगः समाख्यातः त्रिवर्ग-फल-प्राप्तये ।
देवि त्वं पठ वर्मैतन्मन्त्र-गर्भं सुरेश्वरि ।। ३

बिनाध्यानं कुतः सिद्धि सत्यमेतच्च पार्वति ।
चन्द्रोद्भासितमूर्धजां रिपुरसां मुण्डाक्षमालाकराम् ।। ४

बालांसत्स्रकचञ्चलां मधुमदां रक्तां जटाजूटिनीम् ।
शत्रु-स्तम्भन-कारिणीं शशिमुखीं पीताम्बरोद्भासिनीम् ।। ५

प्रेतस्थां बगलामुखीं भगवतीं कारुण्यरुपां भजे ।
ॐ ह्लीं मम शिरः पातु देवी श्रीबगलामुखी ।।६

ॐ ऐं क्लीं पातु मे भालं देवी स्तम्भनकारिणी ।
ॐ अं इं हं भ्रुवौ पातु क्लेशहारिणी ।। ७

ॐ हं पातु मे नेत्रे नारसिंही शुभंकरी ।
ॐ ह्लीं श्रीं पातु मे गण्डौ अं आं इं भुवनेश्वरी ।। ८

ॐ ऐं क्लीं सौः श्रुतौ पातु इं ईं ऊं च परेश्वरी ।
ॐ ह्लीं ह्लूं ह्लीं सदाव्यान्मे नासां ह्लीं सरस्वती ।। ९

ॐ ह्रां ह्रीं मे मुखं पातु लीं इं ईं छिन्नमस्तिका ।
ॐ श्री वं मेऽधरौ पातु ओं औं दक्षिणकालिका ।। १०

ॐ क्लीं श्रीं शिरसः पातु कं खं गं घं च सारिका ।
ॐ ह्रीं ह्रूं भैरवी पातु ङं अं अः त्रिपुरेश्वरी ।।११

ॐ ऐं सौः मे हनुं पातु चं छं जं च मनोन्मनी ।
ॐ श्रीं श्रीं मे गलं पातु झं ञं टं ठं गणेश्वरी ।। १२

ॐ स्कन्धौ मेऽव्याद् डं ढं णं हूं हूं चैव तु तोतला ।
ॐ ह्रीं श्रीं मे भुजौ पातु तं थं दं वर-वर्णिनी ।। १३

ऐं क्लीं सौः स्तनौ पातु धं नं पं परमेश्वरी ।
क्रों क्रों मे रक्षयेद् वक्षः फं बं भं भगवासिनी ।। १४

ॐ ह्रीं रां पातु कक्षि मे मं यं रं वह्नि-वल्लभा ।
ॐ श्रीं ह्रूं पातु मे पार्श्वौ लं बं लम्बोदर प्रसूः ।। १५

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रूं पातु मे नाभि शं षं षण्मुख-पालिनी ।
ॐ ऐं सौः पातु मे पृष्ठं सं हं हाटक-रुपिणी ।। १६

ॐ क्लीं ऐं कटि पातु पञ्चाशद्-वर्ण-मालिका ।
ॐ ऐं क्लीं पातु मे गुह्यं अं आं कं गुह्यकेश्वरी ।। १७


ॐ श्रीं ऊं ऋं सदाव्यान्मे इं ईं खं खां स्वरुपिणी ।
ॐ जूं सः पातु मे जंघे रुं रुं धं अघहारिनी।। १८

श्रीं ह्रीं पातु मे जानू उं ऊं णं गण-वल्लभा ।
ॐ श्रीं सः पातु मे गुल्फौ लिं लीं ऊं चं च चण्डिका ।। १९

ॐ ऐं ह्रीं पातु मे वाणी एं ऐं छं जं जगत्प्रिया ।
ॐ श्रीं क्लीं पातु पादौ मे झं ञं टं ठं भगोदरी ।। २०

ॐ ह्रीं सर्वं वपुः पातु अं अः त्रिपुर-मालिनी ।
ॐ ह्रीं पूर्वे सदाव्यान्मे झं झां डं ढं शिखामुखी ।। २१

ॐ सौः याम्यं सदाव्यान्मे इं ईं णं तं च तारिणी ।
ॐ वारुण्यां च वाराही ऊं थं दं धं च कम्पिला ।। २२

ॐ श्रीं मां पातु चैशान्यां पातु ॐ नं जनेश्वरी ।
ॐ श्रीं मां चाग्नेयां ऋं भं मं धं च यौगिनी ।।२३

ॐ ऐं मां नैऋत्यां लूं लां राजेश्वरी तथा ।
ॐ श्रीं पातु वायव्यां लृं लं वीतकेशिनी ।
ॐ प्रभाते च मो पातु लीं लं वागीश्वरी सदा ।। २४

ॐ मध्याह्ने च मां पातु ऐं क्षं शंकर-वल्लभा ।
श्रीं ह्रीं क्लीं पातु सायं ऐ आं शाकम्भरी सदा ।। २५

ॐ ह्रीं निशादौ मां पातु ॐ सं सागरवासिनी ।
क्लीं निशीथे च मां पातु ॐ हं हरिहरेश्वरी ।।२६

क्लीं ब्राह्मे मुहूर्तेऽव्याद लं लां त्रिपुर-सुन्दरी ।
विसर्गा तु यत्स्थानं वर्जित कवचेन तु ।। २७

क्लीं तन्मे सकलं पातु अं क्षं ह्लीं बगलामुखी ।
इतीदं कवचं दिव्यं मन्त्राक्षरमय परम् ।। २८

त्रैलोक्यविजयं नाम सर्व-वर्ण-मयं स्मृतम् ।
अप्रकाश्यं सदा देवि श्रोतव्यं च वाचिकम् ।।२९

दुर्जनायाकुलीनाय दीक्षाहीनाय पार्वति ।
न दातव्यं न दातव्यमित्याज्ञा परमेश्वरी ।। ३०

दीक्षाकार्य विहीनाय शक्ति-भक्ति विरोधिने ।
कवचस्यास्य पठनात् साधको दीक्षितो भवेत्॥३१

कवचेशमिदं गोप्यं सिद्ध-विद्या-मयं परम् ।
ब्रह्मविद्यामयं गोप्यं यथेष्टफलदं शिवे ।। ३२

न कस्य कथितं चैतद् त्रैलोक्य विजयेश्वरम् ।
अस्य स्मरण-मात्रेण देवी सद्योवशी भवेत्।। ३३

पठनाद् धारणादस्य कवचेशस्य साधकः ।
कलौ विचरते वीरो यथा श्रीबगलामुखी ।।

।। श्री विश्वयामले बगलामुख्यास्त्रैलोक्यविजयं कवचम्।।

रविवार, 8 अप्रैल 2018

अगर आपकी नोकरी नही लग रही या आपका प्रमोशन नहीं हो रहा तो करे यह उपाय 100 % मिलेगी सफलता।

अगर आपकी नोकरी नही लग रही या आपका प्रमोशन नहीं हो रहा तो करे यह उपाय 100 % मिलेगी सफलता।

* चोर साबित हुए आदमी को या जैल काट चुके आदमी या औरत को अमावस्या की रात ९ बजे के बाद अपने घर बुलाकर खीर का भोजन करवाये।
* अगर नौकरी में तरक्की चाहते हैं, तो 7 तरह का अनाज चिड़ियों को डालें।
* गुरूवार को किसी मंदिर में पीली वस्तुये जैसे खाद्य पदार्थ, फल, कपडे इत्यादि का दान करें !
* हर सुबह नंगे पैर घास पर चलें ! सफेद वस्त्र पहन कर ।
* सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की ृकुशा´ की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।

कुलदेवी कृपा प्राप्ति साधना

कुलदेवी कृपा प्राप्ति साधना
कुलदेवी सदैव हमारी कुल
कि रक्षा करती है,हम पर चाहे
किसी भी प्रकार कि कोई
भी बाधाये आने वाली हो तो सर्वप्रथम
हमारी सबसे
ज्यादा चिंता उन्हेही ही होती है.कुलदेवी कि कृपा से
कई जीवन के येसे कार्य है जिनमे पूर्ण
सफलता मिलती है.
कई लोग येसे है जिन्हें
अपनी कुलदेवी पता ही नहीं और
कुछ येसे भी है जिन्हें
कुलदेवी पता है परन्तु
उनकी पूजा या फिर
साधना पता नहीं है.तो येसे समय यह
साधना बड़ी ही उपयुक्त है.यह
साधना पूर्णतः फलदायी है और गोपनीय
है.यह दुर्लभ विधान
मेरी प्यारी भाई/बहन कि लिए आज
सदगुरुजी कि कृपा से हम सभी के लिये.
इस साधना के माध्यम से घर मे क्लेश चल
रही हो,कोई
चिंता हो,या बीमारी हो,धन
कि कमी,धन का सही तरह से
इस्तेमाल न हो,या देवी/देवतओं कि कोई
नाराजी हो तो इन सभी समस्या ओ के
लिये कुलदेवी साधना सर्वश्रेष्ट साधना है.
सामग्री :-३ पानी वाले नारियल,लाल
वस्त्र ,९ सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये ,खाने कि ९ पत्ते ,३
घी कि दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,मौली ,तिन
प्रकार कि मिठाई .
साधना विधि :-
सर्वप्रथम नारियल कि कुछ जटाये निकाले और कुछ बाकि रखे फिर
एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे
को हल्दी और तीसरे नारियल को कुंकुम
से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे .
किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये ,उस पर ३ नारियल
को स्थापित कीजिये,हर नारियल के सामने ३ पत्ते
रखे,पत्तों पर १-१ coin रखे और coin कि ऊपर
सुपारिया स्थापित कीजिये.फिर गुरुपूजन और
गणपति पूजन संपन्न कीजिये.
अब ज्यो पूजा स्थापित कि है उन
सबकी चावल,कुंकुम,हल्
दी,सिंदूर,जल ,पुष्प,धुप और दीप से
पूजा कीजिये.जहा सिन्दूर वाला नारियल है वह सिर्फ
सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम
नहीं इस प्रकार से पूजा करनी है,और
चावल भी ३ रंगों मे ही रंगाने है,अब ३
दीपक स्थापित कर दीजिये.और कोई
भी मिठाई किसी भी नारियल के
पास चढादे .साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे
ही बाटना है.शृंगार पूजा मे
कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये चढादे और
माँ को स्वीकार
करनेकी विनती कीजिये.
और लाल मूंगे कि माला से ३ दिन तक ११ मालाये मंत्र जाप रोज
करनी है.यह साधना शुक्ल पक्ष कि १२,१३,१४
तिथि को करनी है.३ दिन बाद
सारी सामग्री जल मे परिवार के कल्याण
कि प्रार्थना करते हुये प्रवाहित कर दे.
मंत्र :-
|| ओम
ह्रीं श्रीं कुलेश्वरी प्रसीद
- प्रसीद ऐम् नम : ||
साधना समाप्ति के बाद सहपरिवार आरती करे
तो कुलेश्वरी कि कृपा और बढती

अन्नपूर्णा प्रयोग

अन्नपूर्णा प्रयोग
मित्रो !
यहाँ आज में जो प्रयोग बताने जा रहा हूँ उससे घर में सदैव सुख और समृद्धि का वास रहता है।
अन्नपूर्णा प्रयोग :-
प्रयोग किसी भी शुक्रवार की रात्रि 10 के बाद करे । अथवा ब्रह्म मुहूर्त में करे । आपके पास जो भी आसन वस्त्र हो उसका प्रयोग करे । पीला हो तो अति उत्तम है । उत्तर की और मुख कर बैठ जाये । सामने भूमि पर एक लाल वस्त्र बिछा दे ।
उस पर एक मिटटी की मटकी रखे । मटकी पर कुमकुम की 7 बिंदी लगाये । और मटकी का सामान्य पूजन करे । घी का दीपक लगाये । कोई मीठी चीज़ भोग में अर्पण करे ।
माँ अन्नपूर्णा से प्रार्थना करे की वो आपके जीवन में अन्न, धन आदि के भंडार भरे तथा आपको गृहस्थी का पूर्ण सुख प्रदान करे ।
अब निम्न मंत्र को पड़ते जाये और मटकी में थोड़े थोड़े अक्षत डालत जाये । स्मरण रखे आपको मटकी अक्षत से पूरी भरनी होगी । जब तक मटकी भर न जाये साधना बिच में न छोड़े । और आपको अक्षत भी थोड़े थोड़े ही डालने है । जल्दी समाप्त करने के चक्कर में मुट्ठी भर भर कर न डाले ।
जिस तरह हम अंगुष्ठ मध्यमा और अनामिका से यज्ञ में आहुति डालते है उसी प्रकार आपको अक्षत डालना है ।
जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये तब माँ से पुनः प्रार्थना करे । तथा दंडवत प्रणाम करे । यदि क्रिया रात्रि में की है तो अगले दिन और यदि प्रातः की है तो उसी दिन ये मटकी किसी देवी मंदिर में रख आये साथ ही कुछ दक्षिणा भी रख दे ।
प्रसाद घर के सभी सदस्य ले सकते है । लाल वस्त्र भी मंदिर में ही रख कर आना है। मंत्र :- ॥ ॐ ह्रीं अन्नपूर्णेश्वरि ह्रीं नमः ॥
ये एक दिवसीय प्रयोग आपके जीवन के कई संकट दूर कर देगा । घर से रोग दूर हो जाते है । धन आदि में वृद्धि होती है । तथा घर में रात दिन होने वाले कलह शांत हो जाते है ।
तथा माँ अन्नपूर्णा की कृपा से साधक की गृहस्थी में पूर्ण सुख लौट आता है । आवश्यकता है इसे पूर्ण विश्वास से करने की ॥